अघोरी को कुछ लोग औघड़ भी कहते हैं, अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु समझा जाता है लेकिन अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो । अघोर विद्या सबसे कठिन लेकिन तत्काल फलित होने वाली विद्या मानी जाती है । अघोर विद्या के साधक तंत्राधिपित भगवान महाकाल की साधना करते हैं और ये कभी भी किसी से भेदभाव नहीं करता बल्कि सबको समभाव से देखता हैं । भारत में कुछ ऐसे प्रमुख तीर्थस्थल हैं जहां अघोर साधनाएं आज भी होती है और यहां इनके दर्शन भी कभी कभार हो जाते हैं । लेकिन जिनकों भी इनके दर्शन हो जाये तो तुरंत ही उनके चरणों में लेटकर श्रद्धापूर्वक प्रणाम कर लें । अगर उन्होंने हाथ उठाकर आशीर्वाद दे दिया तो समझों उनका भविष्य एवं वर्तमान संवर जाता हैं ।
ऐसी मान्यता हैं कि जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है । लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफन आदि से घृणा करते हैं लेकिन अघोरी इन्हें अपनाता है । अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग भी करता है ।
कहा जाता है कि महाकाल शिव के उपासक अघोरपंथ के लोग भारत भूमि मे केवल चार स्थानों पर ही श्मशान साधना करते हैं । चार स्थानों के अलावा ये लोग माता के शक्तिपीठों, बगलामुखी, काली और भैरव के मुख्य स्थानों के पास के श्मशान में साधना करते हैं ।
यहां होती हैं सबसे ज्य़ादा अघोर साधनाएं-
1- तारापीठ- कोलकाता की तारापीठ धाम शक्तिपीठ अघोर तांत्रिकों का तीर्थ कही जाती है ।
2- कामाख्या पीठ- असम राज्य के गुवाहाटी में मां कामाख्या पीठ भारत का सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जहां सबसे ज्यादा अघोर तांत्रिकों को देखा जा सकता है ।
3- रजरप्पा शक्तिपीठ- रजरप्पा में छिन्नमस्ता देवी का स्थान है और यहां अघोरी लोग सरल बनने की साधना करते है ।
4- चक्रतीर्थ- मध्यप्रदेश के उज्जैन में चक्रतीर्थ नामक स्थान और गढ़कालिका का स्थान अघोर तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है ।