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आप नहीं जानते, जो व्यक्ति आजीवन ब्रह्मचर्य से रहता है उसमें सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु के परखने की बुद्धि आ जाती है। उसमें ऐसी शक्ति आ जाती है जिससे वह बडा़ काम कर दिखाए। मैं जो कुछ कर सका अखंड ब्रह्मचर्य की कृपा का ही फल है। क्षमा करे महात्मन्! एक बात पूछने की इच्छा हो रही है। आज्ञा हो तो प्रश्न करूं “उस व्यक्ति ने बडे संकोच से कहा। इस पर महर्षि ऐसे हँस पडे कि जैसे वे पहले ही जान गए हों, यह व्यक्ति क्या पूछना चाहता है? उन्होंने उसकी झिझक मिटाते हुए कहा-”तुम जो कुछ भी पूछना चाहो, निःसंकोच पूछ सकते हो।
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उस व्यक्ति ने पूछा- ‘महात्मन्! कभी ऐसा भी समय आया है क्या? जब आपने भी काम पीडा अनुभव की हो। महर्षि दयानद ने एक क्षण के लिए नेत्र बंद किए फिर कहा- ‘मेरे मन में आज तक कभी भी काम विकार नहीं आया। यदि मेरे पास कभी ऐसे विचार आए भी तो वह शरीर में प्रवेश नही कर सके। मुझे अपने कामों से अवकाश ही कहाँ मिलता है, जो यह सब सोचने का अवसर आए।
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स्वप्न में तो यह संभव हो सकता है? उस व्यक्ति ने इसी तारतम्य में पूछा- ‘क्या कभी रात्रि में भी सोते समय आपके मन में काम विकार नहीं आया? महर्षि ने उसी गंभीरता के साथ बताया- जब कामुक विचार को शरीर में प्रवेश करने का समय नहीं मिला, तो वे क्रीडा कहां करते? जहाँ तक मुझे स्मरण है, इस शरीर से शुक्र की एक बूंद भी बाहर नहीं गई है। यह सुनकर गोष्ठी में उपस्थित सभी व्यक्ति अवाक् रह गये।
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जिज्ञासु उस रात्रि को स्वामी जी के पास ही ठहर गया। उनका नियम था वे प्रति दिन प्रातःकाल ताजे जल से ही स्नान करते थे। उनका एक सेवक था जो प्रतिदिन स्नान के लिए ताजा पानी कुँए से लाता था। उस दिन आलस्यवश वह एक ही बाल्टी पानी लाया और उसे शाम के रखे वासी जल में मिलाकर इस तरह कर दिया कि स्वामी जी को पता न चले कि यह पानी ताजा नहीं।
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नियमानुसार स्वामी जी जैसे ही स्नान के लिए आए और कुल्ला करने के लिये मुंह में पानी भरा, वे तुरंत समझ गए। सेवक को बुलाकर पूछा, क्यों भाई! आज बासी पानी और ताजे पानी में मिलावट क्यों कर दी? सेवक घबराया हुआ गया और दो बाल्टी ताजा पानी ले आया। यह खबर उस व्यक्ति को लगी तो उसे विश्वास हो गया-जो बातें साधारण मनुष्य के लिए चमत्कार लगती हैं, अखंड ब्रह्मचर्य से वही बातें सामान्य हो जाती है।
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