ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी का समापनः 28 मई 2023 को सुबह 9.57 बजे से माता धूमावती की पूजा का महत्व
माता धूमावती का स्वरूप मलिन और भयंकर है। इनका स्वरूप विधवा का और वाहन कौआ है। खुले केशवाली और सफेद वस्त्र धारण करने वाली हैं। इनके हाथ में शूर्प रहता है। सुहागिनें माता धूमावती की पूजा नहीं करती हैं, वे दूर से ही मता के दर्शन करती हैं। मान्यता है कि इनके दर्शन से पुत्र और पति की रक्षा होती है। मान्यता है कि 108 बार राई में नमक मिलाकर ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा मंत्र का जाप करते हुए आहुति देने से सभी शत्रुओं का नाश होता है और नीम की पत्तियों और घी का हवन करने से गरीबी दूर होती है। मान्यता है कि काले वस्त्र में काले तिल बांधकर मां को भेट करने से सभी मनोकामना पूरी होती है। इनका अवतरण पापियों को दंड देने के लिए हुआ है।
माता धूमावती का इकलौता मंदिर दतिया में पीतांबरा शक्तिपीठ के प्रांगण में है। यहां मां धूमावती की आरती सुबह-शाम की जाती है, लेकिन भक्तों के लिए धूमावती माता का मंदिर शनिवार को सुबह-शाम 2-2 घंटे के लिए ही खुलता है। मां धूमावती को नमकीन पकवान, जैसे- मंगोडे, कचौड़ी और समोसे आदि का भोग लगाया जाता है।
महाविद्या धूमावती की पूजा विधि (Mahavidya Dhumavati Puja vidhi)
1. सुबह स्नान ध्यान कर पूजा स्थल को गंगाजल से स्वच्छ करें।
2. एक चौकी पर माता की प्रतिमा को स्थापित कर उन्हें आक के फूल, सफेद वस्त्र, केसर, अक्षत, सफेद तिल, धतूरा, जौ, सुपारी, दूर्वा, शहद, कपूर, चंदन, नारियल पंचमेवा अर्पित करें। ( ध्यान रहे कि महिलाएं इनकी पूजा नहीं करतीं)
3. घी के दीये, धूप आदि जलाएं। माता धूमावती के स्त्रोत का पाठ करें।
4. सामूहिक जप भी कर सकते हैं।
5. रुद्राक्ष की माला से ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा मंत्र का जाप करें।
ये उग्र स्वभाव की महाविद्या मानी जाती हैं। इन माता धूमावती की लीली न्यारी है। एक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती को भूख सताने लगी। भूख से पीड़ित माता ने भगवान शिव से भोजन की व्यवस्था करने की प्रार्थना की। लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया। इस पर देवी ने श्वास खींचकर समाधिस्थ शिव को निगल लिया। लेकिन भगवान भोलेनाथ के गले में विष होने के कारण देवी पार्वती के शरीर से धुआं निकलने लगा। इनका स्वरूप विकृत और श्रृंगारविहीन हो गया। इस बीच भगवान शिव अपने माया से माता धूमावती के उदर से बाहर आ गए। उन्होंने कहा कि तुमने तो अपने पति को ही निगल लिया, अब से तुम विधवा स्वरूप में रहोगी और धूमावती के नाम से ही पूजी जाओगी। दस महाविद्याओं में इन्हें दारुण महाविद्या कहकर पूजा जाता है।
1. धूं धूमावती स्वाहा।
2. धूं धूं धूमावती स्वाहा।
3. धूं धूं धूं धूमावती स्वाहा।
4. धूं धूं धुर धुर धूमावती क्रों फट् स्वाहा।
5. ॐ धूं धूमावती देवदत्त धावति स्वाहा।
6. ॐ धूमावत्यै विद्महे संहारिण्यै धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात्।