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Chandraghanta Mata: यश, वैभव, कीर्ति और धन धान्य चाहिए तो आज इस विधि, मंत्र, आरती से करें देवी पूजा, शुक्र भी होगा मजबूत

Navratri: आज नवरात्रि का तीसरा दिन है। इस दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां के इस स्वरूप का शासन सुख समृद्धि प्रदाता शुक्र पर है। इसलिए मां को प्रसन्न करने से शुक्र मजबूत होता है और सुख समृद्धि, यश वैभव, कीर्ति और धन-धान्य प्राप्त होता है तो आइये जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा विधि, मंत्र, प्रार्थना और आरती, जिससे मां दुर्गा आसानी से प्रसन्न हो जाती हैं (Goddess durga mantra, aarti, stuti, stotra, kavach, aarti )।

भोपालJul 06, 2024 / 11:25 am

Pravin Pandey

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा विधि


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मां चंद्रघंटा देवी पार्वती का विवाहित स्वरूप है। मान्यता है कि भगवान शिव से विवाह होने के बाद देवी महागौरी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करना शुरू कर दिया, जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाने लगा। इनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन होती है। मान्यता के अनुसार देवी चन्द्रघण्टा का शुक्र ग्रह पर शासन है, इसलिए इनकी पूजा अर्चना करने वाले भक्त को सुख समृद्धि प्रदाता शुक्र अनुकूल फल देते हैं।

देवी चन्द्रघण्टा बाघिन की सवारी करती हैं। ये मस्तक पर अर्धवृत्ताकार चन्द्रमा धारण करती हैं, जो अर्धचन्द्र घंटे के समान प्रतीत होता है। इसी कारण देवी माता को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। देवी चंद्रघंटा दस भुजाओं वाली हैं। इनके चार बाएं हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार तथा कमण्डलु रहता है और पांचवाँ बायां हाथ वर मुद्रा में रहता है। वहीं चार दाहिने हाथों में कमल पुष्प, तीर, धनुष और जप माला धारण करती हैं, जबकि पांचवें दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं।

देवी पार्वती का यह रूप शांतिपूर्ण और भक्तों का कल्याण करने वाला है। इस रूप में देवी चंद्रघंटा अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित युद्ध के लिए तैयार रहती हैं। मान्यता के अनुसार, उनके मस्तक पर विद्यमान चन्द्र-घंटी की ध्वनि उनके भक्तों की समस्त प्रकार की शक्तियों से रक्षा करती हैं। इन देवी का प्रिय पुष्प चमेली है। आइये जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा के मंत्र, प्रार्थना और आरती

मां चंद्रघंटा के मंत्र

  1. ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

2. पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥


3. या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां चंद्रघंटा स्तोत्रम्


वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
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आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥
बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम्।
स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम॥
कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च।
न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम्॥

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मां चंद्रघंटा की आरती


जय मां चन्द्रघण्टा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
मन की मालक मन भाती हो। चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। सन्मुख घी की ज्योत जलाये॥
श्रद्दा सहित तो विनय सुनाये। मूर्ति चन्द्र आकार बनाये॥
शीश झुका कहे मन की बाता। पूर्ण आस करो जगत दाता॥
काँचीपुर स्थान तुम्हारा। कर्नाटिका में मान तुम्हारा॥
नाम तेरा रटूँ महारानी। भक्त की रक्षा करो भवानी॥

मां चंद्रघंटा पूजा विधि


वाराणसी के पुरोहित पं. शिवम तिवारी के अनुसार देवी मां के इस स्वरूप की पूजा मुख्य रूप से दो मंत्रों से की जाती है। माना जाता है कि भक्तों को इनकी पूजा करते समय इनके मंत्र का जाप कम से कम 11 बार करना चाहिए। इसके लिए नीचे लिखी विधि अपनाएं..
मंत्र: 1- पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
मंत्र: 2- या देवी सर्वभू‍तेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मंत्रः 3-ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
1. नवरात्रि के तीसरे दिन माता की चौकी पर मां चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
2. गंगा जल या गोमूत्र से पूजा स्थल को शुद्ध करने के बाद चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें और फिर पूजन का संकल्प लें।
3. फिर वैदिक और दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से मां चंद्रघंटा सहित सभी स्थापित देवी-देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसके तहत आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य,धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि अर्पित करें।
4. पूजा के समय भूरे या ग्रे रंग की कोई वस्तु मां को अर्पित करें और इसी रंग के कपड़े पहनें, मां चंद्रघंटा का वाहन सिंह है इसलिए सुनहले रंग का कपड़ा पहनना भी शुभ माना जाता है।
5. साथ ही भोग में मां को दूध की मिठाई और खीर आदि अर्पित करें, माता चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए शहद भी अर्पित करना चाहिए।
6. पूजा के दौरान ऊपर लिखे मंत्रों, ध्यान, स्तुति, स्त्रोत, कवच, आरती का जप करते रहें।
7. अब प्रसाद बांटें और पूजन संपन्न करें। कन्याओं को खीर, हलवा और मिठाई खिलाएं, इससे माता प्रसन्न होती हैं और दुख हरती हैं।
8. साथ ही मन ही मन में माता से प्रार्थना करें कि हे मां! आप की कृपा हम पर सदैव बनी रहे और हमारे दुःखों का नाश हो।

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