धर्म-कर्म

सोमवार व्रत: जानें कहां कौन सी गलती कर देते हैं हम? कि नहीं मिल पाता पूरा आशीर्वाद

Lord shiv puja : जानें किसके बिना व्रत पूर्ण नहीं?

Mar 14, 2021 / 11:29 am

दीपेश तिवारी

Lord Shiv puja day is Monday

सोमवार का दिन हिन्दू धर्म परंपराओं में भगवान शिव की भक्ति को समर्पित है। वैसे तो शिव भक्ति हर रोज, हर पल ही शुभ होती है, लेकिन सोमवार के दिन ही शिव पूजा का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव जी की आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए। अगर संभव हो तो व्रत वाले दिन शिव भगवान के मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल व दूध चढ़ाएं। उसके बाद व्रत रखने का संकल्प लें।

दिन में सुबह और शाम भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करें। इस दिन पूजा करते समय व्रत कथा जरूर सुनें, क्योंकि इसके बिना व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। शाम को पूजा के बाद व्रत खोल लें। वहीं शास्त्रों के अनुसार सावन सोमवार व्रत में तीन पहर तक उपवास रखकर उसके बाद व्रत खोलना चाहिए, मतलब एक समय ही भोजन करना चाहिए।

सोमवार व्रत विधि और नियम:-
सोमवार के व्रत तीन प्रकार के है- साधारण प्रति सोमवार, सोम्य प्रदोष और सोलह सोमवार – विधि तीनों की एक जैसी होती है। सोमवार का व्रत साधारणत: दिन के तीसरे पहर तक होता है। व्रत मे फलाहार या पारण का कोई विशेष नियम नहीं है। दिन रात में केवल एक समय भोजन करें। इस व्रत मे शिवजी पार्वती का पूजन करना चाहिए। शिव पूजन के बाद कथा अवश्य सुननी चाहिए।
सोमवार व्रत आरती:
जय शिव ओंकारा जय शिव ओंकारा |

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्दाडी धारा | टेक

एकानन, चतुरानन, पंचानन राजे |

हंसानन गरुडासन बर्षवाहन साजै | जय…

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अते सोहै |
तीनो रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहै | जय…

अक्षयमाला वन माला मुंड माला धारी |

त्रिपुरारी कंसारी वर माला धारो |जय…

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे |

सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे । जय…
कर मे श्रेष्ठ कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता

जग – कर्ता जग – हर्ता जग पालन कर्ता। जय…

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव जानत अविवेका

प्रणवाक्षर के मध्य ये तीनो एका | जय
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई गावे |

कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे | जय…

Lord Shiv puja day is Monday

सोमवार व्रत कथा:
एक धनी व्यापारी एक नगर में रहता था। उसका दूर-दूर तक व्यापार फैला हुआ था। सभी लोग नगर में उस व्यापारी का मान-सम्मान करते थे। वह व्यापारी इतना सबकुछ होने पर भी बहुत दुखी था, कारण उसका कोई पुत्र नहीं था। ऐसे में उसे हर समय एक ही चिंता सताती रहती थी, कि उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा।

वह व्यापारी पुत्र पाने की इच्छा से हर सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। व्यापारी शिव मंदिर में सायंकाल को जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था। एक दिन माता पार्वती ने उस व्यापारी की भक्ति देखकर भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है।

कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।’ इस पर भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- ‘हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।’

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इसके बावजूद पार्वतीजी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा- ‘नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा-अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देना ही होगा।’

पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- ‘तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा।’ उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई।

भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गईं।

बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया। व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। जब पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने पुत्र के मामा को बुलाया और कहा कि पुत्र को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ।

लड़का अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया। रास्ते में जहां भी मामा और भांजा रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे। लंबी यात्रा के बाद मामा और भांजा एक नगर में पहुंचे।

उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई, लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दे। इससे उसकी बदनामी होगी। वर के पिता ने व्यापारी के लडके को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया।

उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा। वर के पिता ने इसी संबंध में लड़के के मामा से बात की।

मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। लडके को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया। लड़का जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- ‘राजकुमारी, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है।’जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया।

राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर लडका अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया। गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब उसकी आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए।

रात को अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा भांजे को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे। मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने।

पार्वतीजी ने भगवान से कहा- ‘प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें।’भगवान शिव ने पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर देखा तो पार्वतीजी से बोले- ‘पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था।

इसकी आयु तो पूरी हो गई।’पार्वतीजी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- ‘हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे।

इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है।’ पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा।

शिक्षा समाप्त करके लडका मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा।

राजा ने उसको तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा मामा भांजा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।

रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। अपने बेटे के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।

भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।

उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- ‘हे श्रेष्ठी ! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।’ व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।

सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

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