लोहड़ी नाम सुनते ही भांगड़ा, गिद्धा, मूंगफली और रेवड़ी की याद आने लगती हैं । पौष माह में पड़ने वाली कड़ाके की सर्दी से बचने और आपस में भाईचारे एवं अग्नि का सुकून लेने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता हैं । लोहड़ी पर्व का संबंध नई फसल से भी है, इसी समय गेंहू और सरसों की फसलें अपने अंतिम चरण पर होती हैं, चारों तरफ किसानों के खेतों में गेंहू, सरसों और चना, मसूर की फसलें लहराती नजर आती हैं । पूरे उत्तर भारत और खासकर पंजाब में बहुत ही धुम धाम से इस लोहड़ी पर्व को मनाया जाता हैं । इस दिन लोग अपने घरों एवं चौराहों के बाहर लोहड़ी जलाते हैं । आग का घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी जो की एक योद्धा की कहानी सुनते सुनाते हुए रेवड़ी, मूंगफली और लावा का प्रसाद खाते हैं ।
ऐसे और इसलिए मनाते हैं लोहड़ी पर्व
इस दिन अलाव जलाकर उसके आसपास मिलजुलकर डांस करते हैं । लड़के भांगड़ा करते हैं, लड़कियां और महिलाएं गिद्धा डांस करती है । कहा जाता हैं कि लोहड़ी शब्द ‘लोई (संत कबीर की पत्नी) से उत्पन्न हुआ था । लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर माना जाता है कि यह आग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है । माना जाता हैं कि मुगल काल में अकबर के दौरान दुल्ला भट्टी पंजाब में रहता था, उसी दौर में अमीर सौदागरों को सदंल बार की जगह लड़कियों को बेचा जा रहा था, तो दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की रक्षा की थी । तभी से दुल्ला भट्टी की याद में लोहड़ी पर्व पर उसकी कहानी पढ़ी और सुनाई जाती हैं ।