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बच्चों की दीर्घायु और उन्नति के लिए ललही पर जरूर पढ़े यह कथा

Lalahi Chhath Vrat Katha: हलछ्ठ यानी ललही छठ व्रत कथा पढ़ने से ही बलराम जयंती व्रत पूरा होता है। यह व्रत संतान को दीर्घायु प्रदान करने वाली होती है। साथ ही उनको उन्नति मिलती है। मान्यता है कि हल षष्ठी का व्रत रखने से संतान को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। पढ़ें- ललही छठ की पौराणिक कथा

भोपालAug 22, 2024 / 04:34 pm

Pravin Pandey

Lalahi Chhath Vrat Katha

ललही छठ कथा

Lalahi Chhath Vrat Katha: हिंदू धर्म में भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि हलछठ (हरछठ), ललही छठ और बलराम जयंती के रूप में जानी जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम का जन्म हुआ था। यह व्रत रखने से व्रती के पुत्र दीर्घायु और संपन्न होते हैं। इससे संतान का सभी संकट दूर होता है। इस दिन ललही छठ कथा जरूर सुनना चाहिए ..

ललही छठ व्रत कथा ( Lalahi Chhath Vrat Katha)

ललही छठ व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव संबंधित परेशानियों से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गोरस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी, लेकिन कुछ दूर पहुंचने पर ही उसे असहनीय प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

उधर, जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।

इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।
ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।
बहुत-सी स्त्रियों की ओर से आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया ।

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