इसके बाद मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु जब अमृत बांटने लगे तब एक राक्षस राहु को आभास हुआ कि कहीं दानवों का नंबर आते-आते अमृत खत्म न हो जाए। इस पर राहु अपनी पंक्ति से उठकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया। लेकिन राहु की इस हरकत को सूर्य और चंद्र ने पहचान लिया और उन्होंने भगवान विष्णु को इसका इशारा कर दिया।
इधर, राहु के मुंह में अमृत की बूंद जा चुकी थी, लेकिन जब तक अमृत की बूंद राहु के गले से नीचे उतरती। पंक्ति बदलने और नियम तोड़ने से नाराज भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र की मदद से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। इससे राहु के शरीर के दो टुकड़े हो गए। राहु के सिर के हिस्से को राहु और धड़ को केतु कहा जाने लगा।
कथा के अनुसार राहु का सिर धड़ से अलग होने के बाद राहु के मुंह से उसका लार धरती पर आ गिरा। इससे लहसुन की उत्पत्ति हुई और उसका रंग सफेद हुआ। वहीं धड़ से केतु का खून धरती पर गिरा, इससे प्याज की उत्पत्ति हुई और इसका रंग लाल हुआ। चूंकि राहु के लार और केतु के रक्त से इनकी उत्पत्ति हुई, इसलिए इससे अजीबोगरीब गंध भी निकलती है।
इसमें तामसिकता पैदा हुई और इनका सेवन करने से आवेग और आक्रोश बढ़ता है। इसी कारण इन्हें खाना अच्छा नहीं माना जाता।