धर्म-कर्म

Khatu Shyam: क्या है श्याम बाबा की कहानी, इस रूप में देते हैं दर्शन

Khatu Shyam Baba Ki Kahani देश में कई मठ मंदिर हैं जो कलियुग में निराश और हताश लोगों का सहारा हैं। जो हर हारे हुए भक्त पर कृपा बरसाते हैं और इनका नाम लेने मात्र से भक्त का कल्याण हो जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी एकादशी को श्याम बाबा का जन्मोत्सव मनाया जाता है। आइये जानते हैं श्याम बाबा की कहानी, किस रूप में दर्शन देते हैं और खाटू श्याम की महिमा…

भोपालMay 17, 2024 / 12:09 pm

Pravin Pandey

खाटू श्याम की कहानी

खाटू श्याम बाबा की कहानी

राजस्थान के सीकर जिले में खाटू का श्याम मंदिर है, यहीं श्यामजी विराजमान हैं। यहां हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल षष्ठी से द्वादशी तक मेला लगता है। वहीं देव उठनी एकादशी को बाबा का जन्मोत्सव मनाया जाता है। आइये जानते हैं खाटू श्यामजी की पूरी कहानी।
कहानी महाभारत काल की है। भीम के पौत्र बर्बरीक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर में से एक थे। उन्हें माता दुर्गा से तीन ऐसे दिव्य बाण मिले थे, जो लक्ष्य को भेदकर उनके पास वापस आ जाते थे। इसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। बर्बरीक के मन में कहीं न कहीं था कि उनके पिता और पितामह का पक्ष युद्ध में कमजोर पड़ सकता है। इसलिए युद्ध के मैदान में बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिंदु एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूंगा जो हार रहा होगा। बर्बरीक की इस घोषणा ने पांडव शिविर को चिंता में डाल दिया।

भगवान श्रीकृष्ण की इस चिंता का पता पांडवों को भी लगा, लेकिन अर्जुन को श्रीकृष्ण से बर्बरीक की प्रशंसा सहन नहीं हो रही थी। इस पर भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बर्बरीक की वीरता का चमत्कार दिखाने ले गए। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि यह जो वृक्ष है ‍इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं मान जाऊंगा। बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया।

जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा। कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रखकर उसे छुपा लिया कि इसमें छेद नहीं हो पाएगा। लेकिन सभी पत्तों को छेदता हुआ तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रूक गया। तब बर्बरीक ने कहा कि प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए, क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दे रखी है आपके पैर को छेदने की नहीं।

यह चमत्कार देखने के बाद कृष्ण और भी चिंतित हो गए। उस समय तो वो लौट आए लेकिन उनकी चिंता नहीं गई, उनको मालूम था कि प्रतिज्ञा के कारण बर्बरीक हारने वाले का साथ देगा। यदि कौरव हारते हुए नजर आए तो फिर पांडवों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा और पांडव बर्बरीक के सामने हारते नजर आए तो फिर वह पांडवों का साथ देगा। इस तरह वह दोनों ओर की सेना को एक ही तीर से खत्म कर देगा।

एक सुबह भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का वेश बनाकर बर्बरीक के शिविर पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा- मांगों ब्राह्मण, क्या चाहिए? ब्राह्मणरूपी कृष्णजी ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्णजी के जाल में फंस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश मांग लिया।

बर्बरीक ने पितामह पांडवों की विजय के लिए स्वेच्छा से फाल्गुन शुक्ल द्वादशी के दिन शीशदान कर दिया। लेकिन बर्बरीक के बलिदान को देखकर दान के बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वरदान दिया। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। जहां कृष्ण ने उसका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है।


खाटू श्याम के रहस्य और मान्यताएं

मान्यता है कि स्वप्न दर्शन के बाद बाबा श्याम खाटू धाम में एक कुंड जिसे श्याम कुंड कहते हैं, उसीसे प्रकट हुए थे और श्रीकृष्ण शालिग्राम के रूप में मंदिर में दर्शन देते हैं। यह भी माना जाता है कि यहां आने वाले हर हारे हुए और निराश भक्त को वो सहारा देते हैं।

यह मंदिर काफी प्राचीन है, इसकी आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा का कहना है कि सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। हालांकि शीश दान से पहले बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्‍छा जताई तो श्रीकृष्‍ण ने उनके शीश को एक ऊंचे स्थान पर स्थापित करके उन्हें युद्ध देखने की दृष्टि दी। साथ ही वरदान दिया कि कलियुग में तुम्हें मेरे नाम से पूजा जाएगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा।
इसी कथा के अनुसार युद्ध समाप्ति के बाद जब पांडव विजयश्री का श्रेय देने के लिए वाद विवाद कर रहे थे तब श्रीकृष्ण कहा कि इसका निर्णय तो बर्बरीक का शीश ही कर सकता है। तब बर्बरीक ने कहा कि युद्ध में दोनों ओर श्रीकृष्ण का ही सुदर्शन चल रहा था और द्रौपदी महाकाली बन रक्तपान कर रही थी।

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