सामान्य कांवड़ यात्रा
सावन और फाल्गुन में भगवा वस्त्र में कांधे पर कांवड़ धरे बोल बम बोलते जल लेने जा रहे शिव भक्तों को देखा होगा। अक्सर ये रूक रूक कर यात्रा करते हैं, इस कांवड़ यात्रा को सामान्य कांवड़ यात्रा कहा जाता है। सामान्य कांवड़िये अपनी यात्रा के दौरान जहां चाहें रूककर आराम कर सकते हैं। यहा कारण है कि यात्रा के रास्ते में लगे पंडालों में ये रूकते हैं और आराम के बाद आगे का सफर शुरू करते हैं। ये भी पढ़ेंः bel tree : बेल के पेड़ की उत्पत्ति की पौराणिक कहानी, जानें किस देवी का होता है निवास
डाक कांवड़
डाक कांवड़ यात्रा सबसे कठिन कांवड़ यात्रा में से एक है। डाक कांवड़ यात्रा में यात्री शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक बिना रूके चलते रहते हैं। इसे प्रायः 24 घंटे में पूरा करना होता है। इनके लिए मंदिरों में विशेष इंतजाम किए जाते हैं। उनके लिए लोग रास्ता बना देते हैं, ताकि वे शिवलिंग तक बिना रूके चलते रहें। डाक कांवड़ यात्रा कर रहे कांवड़ियों को ही डाक बम कहा जाता है।यह डाक कांवड़ यात्रा प्रायः कुछ लोग टोली बनाकर किसी वाहन से पूरी करते हैं। इस यात्रा में शामिल लोगों में से एक या दो सदस्य, गंगा जल को हाथ में लेकर लगातार बिना रूके दौड़ते रहते हैं। इन सदस्यों के थक जाने के बाद दूसरा सदस्य दौड़ने के लिए आ जाता है और पहला सदस्य अपनी टोली के पास वाहन में बैठ जाता है।
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इसमें भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। उनकी मदद के लिए कोई न कोई सहयोगी साथ चलता है। जब कांवड़िया आराम करता है तो साथी कांवड़ अपने कंधे पर रखकर खड़ी अवस्था में चलने के अंदाज में कांवड़ को हिलाता रहता है।