कांवड़ यात्रा का महत्व (importance of sawan kanwad Yatra)
सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है, इस महीने भगवान शिव की पूजा अर्चना से भगवान भोलेनाथ आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। इसका एक आसान उपाय कावड़ यात्रा भी है। इसके अनुसार शिवभक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कावड़ यात्रा निकालते हैं और पवित्र नदी का जल लेकर कठिन व्रत का पालन करते हुए घर के पास या किसी पौराणिक शिवालय में जल अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इससे भक्त की मनोकामना पूरी होती है।कांवड़ यात्रा शुरू करने से पहले श्रद्धालु बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों और कलश से कांवड़ तैयार करते हैं या खरीदते हैं। बाद में इसी कांवड़ को सुदूर ले जाकर कलश में पवित्र नदी से गंगाजल भरकर लौटते हैं। कांवड़ यात्रा में शामिल शिवभक्तों को कांवडि़या कहा जाता है। नंगे पांव यात्रा करते कांवडिये इस कावड़ को यात्रा में अपने कंधे पर ही रखते हैं, इसे किसी भी हाल में जमीन पर नहीं रखते। कहीं रूकना होता है तो पेड़ पर या किसी कांवड़िये कांधे पर रख दिया जाता है।
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कांवड़ यात्रा का इतिहास (sawan kanwad Yatra history)
किंवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम, भगवान शिव के परम भक्त थे। मान्यता है कि श्रावण मास में वे कावड़ लेकर बागपत जिले के पास ‘पुरा महादेव’ गए थे। इसके लिए उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। तब से इस परंपरा की शुरुआत हो गई और भगवान शिव को प्रिय महीने सावन और भगवान शिव के विवाह और सृष्टि की शुरुआत के पावन महीने फाल्गुन में भक्त कावड़ यात्रा निकालने लगे।इस कारण किया गया अभिषेक, रावण था पहला कांवड़िया
एक अन्य मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला था उसे भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए पी लिया था। इसके बाद उनका कंठ नीला पड़ गया और उनके शरीर में जलन होने लगी थी। इसके बाद देवताओं ने शिव जी को जल अर्पित किया था। इसी के बाद कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन का विष पीने से शिवजी को हो रहे कष्ट को कम करने के लिए शिव भक्त रावण ने तप किया था। इसके लिए रावण कांवड़ में जल भरकर लाया था और शिव जी की जलाभिषेक किया था। ये भी पढ़ेंः Nandi Ke Upay: सावन में करें नंदी के ये उपाय, जाग जाएगी सोई किस्मत
कावड़ यात्रा के नियम (kanwar yatra niyam)
- कांवड़ियों को संयम के साथ एक साधु और ब्रह्मचारी का जीवन जीना होता है। भगवान का ध्यान किया जाता है।
- गंगाजल भरने से लेकर उसे शिवलिंग पर अभिषेक तक का पूरा सफर भक्त पैदल, नंगे पांव पूरा करना होता है।
- यात्रा के दौरान नशा नहीं करना चाहिए और मांसाहार का सेवन नहीं किया जाता है।
- कांवड़ यात्रा में किसी को अपशब्द बोलने पर पुण्यफल नष्ट हो जाता है।
- स्नान किए बगैर कावड़ को नहीं छूना चाहिए और यात्रा के दौरान शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए।
- आम तौर पर यात्रा के दौरान कंघा, तेल, साबुन आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
- कांवड़ यात्रा के दौरान सावन शिवरात्रि और फाल्गुन में महाशिवरात्रि पर शिवजी के जलाभिषेक से पहले तक चारपाई पर नहीं बैठा जाता है और कठोर नियम संयम का पालन किया जाता है।