1. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का पहला एक तिहाई भाग सर्वाधिक शुभ समय माना जाता है। इसलिए कलश स्थापना इस समय ही कर लेनी चाहिए।
2. यदि किसी कारणवश पहले एक तिहाई भाग में कलश स्थापना न हो सके तो अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना को पूरा कर लेना चाहिए।
3. नवरात्रि घटस्थापना चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में टालना चाहिए (हालांकि शास्त्रों में इन योगों में घटस्थापना को वर्जित नहीं किया गया है)।
4. मध्याह्न से पूर्व प्रतिपदा के समय घटस्थापना पूजा कर लेनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सूर्योदय के बाद सोलह घटी के भीतर कलश स्थापना हो जानी चाहिए। मध्याह्नकाल के बाद, रात्रिकाल में कलश स्थापना किसी भी सूरत में न करें।
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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार घट स्थापना और कलश स्थापना में अंतर होता है। कलश तांबे का होता है और घट मिट्टी का होता है। यहां पहले जानिए घट स्थापना के नियम और इसमें कौन सी गलती नहीं करनी चाहिए….
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार घट स्थापना और कलश स्थापना में अंतर होता है। कलश तांबे का होता है और घट मिट्टी का होता है। यहां पहले जानिए घट स्थापना के नियम और इसमें कौन सी गलती नहीं करनी चाहिए….
1. घट अर्थात मिट्टी का घड़ा लें और नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में ईशान कोण में स्वच्छ स्थान पर पूजा के नियमों का पालन करते हुए स्थापित करें।
2. जहां घट स्थापित करना है वहां एक पाट रखें और उस पर साफ लाल कपड़ा बिछाएं फिर उस पर घट स्थापित करें। घट पर रोली या चंदन से स्वास्तिक बनाएं। घट के गर्दन में मौली बांधे।
3. घट में पहले थोड़ी सी मिट्टी डालें और फिर जौ डालें, फिर एक परत मिट्टी की बिछा दें, एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें। इस तरह ऊपर तक पात्र को मिट्टी से भर दें, अब इस पात्र को स्थापित करके पूजा करें।
1. घट में गंदी मिट्टी और गंदे पानी का प्रयोग न करें।
2. घट को एक बार स्थापित करने के बाद उसे 9 दिनों तक हिलाएं नहीं।
3. गलत दिशा में घट स्थापित न करें, जहां घट स्थापित कर रहे हैं, वह स्थान और आसपास का स्थान स्वच्छ होना चाहिए।
4. शौचालय या बाथरूम के आसपास घट स्थापित नहीं होना चाहिए, घट को अपवित्र हाथों से नहीं छूना चाहिए।
2. घट को एक बार स्थापित करने के बाद उसे 9 दिनों तक हिलाएं नहीं।
3. गलत दिशा में घट स्थापित न करें, जहां घट स्थापित कर रहे हैं, वह स्थान और आसपास का स्थान स्वच्छ होना चाहिए।
4. शौचालय या बाथरूम के आसपास घट स्थापित नहीं होना चाहिए, घट को अपवित्र हाथों से नहीं छूना चाहिए।
5. घट स्थापित करने के बाद घर को सूना नहीं छोड़ना चाहिए।
6. घट की नियमित रूप से पूजा अर्चना करते हैं।
7. घट किसी भी रूप में खंडित नहीं होना चाहिए।
8. नवरात्रि के बाद घट के जवारों को विधिवत नदी में प्रवाहित करें।
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1. तांबे के कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग पर मौली बांधकर उसे उस मिट्टी के पात्र अर्थात घट पर रखें। अब कलश के ऊपर पत्ते रखें, पत्तों के बीच में मौली बंधा हुआ नारियल लाल कपड़े में लपेटकर रखें।
2. अब कलश की पूजा करें। फल, मिठाई, प्रसाद आदि कलश के आसपास रखें। इसके बाद गणेश वंदना करें और फिर देवी का आह्वान करें।
3. देवी- देवताओं की प्रार्थना कर उनका आवाहन करें कि ‘हे समस्त देवी-देवता, आप सभी 9 दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों।
4. आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवतागण कलश में विराजमान हैं, कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूलमाला अर्पित करें, इत्र अर्पित करें, नैवेद्य यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें।
5. कलश को शुद्ध हाथ और स्नान करने के बाद ही छुएं।
6. इसके अलावा घटस्थापना की सावधानयों का भी पालन करें और उसके लिए होने वाली गलतियों का भी ध्यान दें।
1. तांबे के कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग पर मौली बांधकर उसे उस मिट्टी के पात्र अर्थात घट पर रखें। अब कलश के ऊपर पत्ते रखें, पत्तों के बीच में मौली बंधा हुआ नारियल लाल कपड़े में लपेटकर रखें।
2. अब कलश की पूजा करें। फल, मिठाई, प्रसाद आदि कलश के आसपास रखें। इसके बाद गणेश वंदना करें और फिर देवी का आह्वान करें।
3. देवी- देवताओं की प्रार्थना कर उनका आवाहन करें कि ‘हे समस्त देवी-देवता, आप सभी 9 दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों।
4. आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवतागण कलश में विराजमान हैं, कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूलमाला अर्पित करें, इत्र अर्पित करें, नैवेद्य यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें।
5. कलश को शुद्ध हाथ और स्नान करने के बाद ही छुएं।
6. इसके अलावा घटस्थापना की सावधानयों का भी पालन करें और उसके लिए होने वाली गलतियों का भी ध्यान दें।
1. ऊं धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।।
2. ऊँ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।।
3. ऊं वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्काभसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद।।
4. ऊं भूर्भुवः स्वः भो वरुण, इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण।
5. ऊं अपां पतये वरुणाय नमः’