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बुधवार 15 अप्रैल को बाबा काल भैरव की पूजा का खास दिन, जरूर करें ये काम

ऐसे करें काल भैरव की कामना पूर्ति पूजा

Apr 14, 2020 / 01:08 pm

Shyam

बुधवार 15 अप्रैल को बाबा काल भैरव की पूजा का खास दिन, जरूर करें ये काम

वैशाख मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि है जिसे कालाष्टमी कहा जाता है, इस दिन भगवान शिव के कालभैरव स्वरूप की विशेष पूजा करने का विधान है। कालाष्टमी को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कालभैरव की पूजा करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। इस विध्वत बाबा कालभैरव का पूजन कर उन्हें इस चीज का भोग लगाने से वे प्रसन्न हो जाते हैं। साल 2020 के वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की कालाष्टमी तिथि 14 अप्रैल दिन बुधवार को हैं। जानें काल भैरव को प्रसन्न करने की पूजा विधि।

 

शिव से काल भैरव की उत्पत्ति

शास्त्रों में कथा आती है कि एक बार प्रजापिता ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु में भयंकर विवाद हो गया, इन दोनों देवों के विवाद के कारण भगवान शिव शंकर अत्यधिक क्रोधित हो गये। जब महादेव क्रोधित हुये तो उनके क्रोध से एक अद्भुत शक्ति का जन्म हुआ जिसे कालभैरव कहा गया। जिस दिन बाबा काल भैरव उत्पन्न हुये उस दिन कृष्णपक्ष की कालाष्टमी तिथि थी। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन पूरे श्रृद्धाभाव से पूजन और व्रत करने से इंसान के जीवन में हमेशा सुख समृद्धि बनी रहती है।

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ऐसे करें पूजन

कालाष्टमी के दिन जीवन की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति एवं दुःखों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर के अंश अवतार बाबा काल भैरव का अपने घर पर ही या शिव मंदिर में विधिवत पूजन करें। श्रद्धापूर्वक किए गए पूजन से बाबा काल भैरव प्रसन्न होकर मनचाही आध्यात्मिक और भौतिक कामनाओं को पूरा कर देते हैं।

बाबा काल भैरव को इस चीज का भोग लगावें

15 अप्रैल बुधवार को कालाष्टमी के दिन बाबा काल भैरव की कृपा पाने के लिए उनको पंच मेवा अर्थात 5 प्रकार के मिष्ठान्न का भोग पान या पीपल के पत्ते पर लगावें। बाद में उसी भोग को किसी कुत्ते को खिला दें। ऐसा करने से बाबा काल भैरव प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान देते हैं।

बुधवार 15 अप्रैल को बाबा काल भैरव की पूजा का खास दिन, जरूर करें ये काम

इस भैलव मंत्र का करें जप

कालाष्टमी के दिन इस भैरव मंत्र का जप 108 बार जरूर करना चाहिए- शिवपुराण में दिये इस मंत्र का श्रद्धा पूर्वक जप करने से अनेक मनोकामना पूरी हो जाती है।

मंत्र-

।। ऊँ अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्।

भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि।।

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