जया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा
धर्मग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में एक ब्राह्मण पत्नी के साथ रहा करता था। ब्राह्मण दंपती धार्मिक, दयालु और संस्कारवान था। इनके जीवन में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी, लेकिन कोई संतान नहीं थी। ये पति-पत्नी अपने मन में संतान प्राप्ति की कामना लिए भगवान शिव की पूजा-पाठ और उनकी भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन भगवान शिव ब्राह्मण दंपती की पूजा से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और कहा कि पास के जंगल में मेरी एक मूर्ति स्थित है जिसकी कभी भी कोई पूजा नहीं करता है, तुम दोनों वहां जाकर मेरी उस मूर्ति की पूजा-अर्चना करो।
भगवान शिव के कहने पर ब्राह्मण दंपती जंगल में गया और वहां उसे शिव की मूर्ति मिल गई। शिव जी की प्रतिमा को साफ करने के लिए ब्राह्मण पानी खोजने गया तो रास्ते में ही ब्राह्मण को एक सांप ने डस लिया जिसकी वजह से वह बेहोश होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय बीतने के बाद ब्राह्मण के वापस न आने पर पत्नी को चिंता हुई और वह पति को तलाशने निकली।
लेकिन थक हारकर वह मूर्ति के पास बैठकर शिव जी की तपस्या करने लगी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ब्राह्मण को जीवनदान दे दिया और उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। ब्राह्मण पति-पत्नी संतान की प्राप्ति होने के बाद सुख-शांति से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। इस कथा के अनुसार, जो भी स्त्री जया पार्वती व्रत को सच्चे मन से रखती है उसे अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।
ये भी पढ़ेंः इस सबसे लंबे व्रत को रखने से मिलता है मनचाहा पति, जानें व्रत का महत्व और नियम (नोट-इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं, www.patrika.com इसका दावा नहीं करता। इसको अपनाने से पहले और विस्तृत जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।)