ऐसे में ज्योतिष के जानकारों की मानें तो कोरोना की उत्पत्ति का सबसे मुख्य कारण शनि रहा है। वहीं केतु ने इसे रहस्यमयी और राहु ने इसके फैलाव में सहयोग दिया है। यानि इसकी जन्मपत्री में मुख्य रुप से शनि, राहू व केतु का खास असर दिखता है। वहीं गुरु पर दुष्ट ग्रहों की दृष्टि भी इसमें प्रमुख कारक में रही है।
विभिन्न ग्रहों की चालों को देखते हुए ज्योतिष के जानकारों का मानना है कि अभी कोरोना में कभी कमी कभी गति का रुख देखने को मिलता रह सकता है। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार कोरोना का जीवन अभी सितंबर 2020 तक चलता हुआ दिख रहा है। हां ये अलग बात है कि इस समय तक ये काफी कमजोर पड़ सकता है।
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राशि के अनुसार ये करें उपाय…वहीं कोरोना को लेकर ज्योतिष के जानकारों की ओर से राशि के अनुसार मंत्र व उपाय भी बताए जा रहे हैं, ऐसे में कई लोगों का माना है कि इन मंत्रों का जाप व उपाय अपनाने से आप इस वायरस से खुद को सुरक्षित रखने में मदद ले सकते हैं। जो इस प्रकार हैं…
1. मेष राशि –
वैदिक नियमों के साथ ही सदाचार का पालन करें। मीठी रोटी गाय को खिलाएं व किसी से कोई वस्तु मुफ्त में न लें। लाल रंग का रूमाल प्रयोग करें।
मंत्र : ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः’ भौमाय नमः’ का जाप करें।
चांदी के बर्तन में पानी पिएं व सफेद चीजों का प्रयोग अधिक करें। मंदिर में ध्वजा दान के साथ ही अनैतिक संबंधों से दूर रहें।
मंत्र : ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः’ का जाप करें।
गाय की सेवा करें व हरा चारा खिलाएं। अस्पताल में मुफ्त दवाएं दान करने के साथ ही तामसिक भोजन का परित्याग करें। अस्पताल में मुफ्त दवाएं दान करें।
मंत्र : ‘ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः’ का जाप करें।
धार्मिक कार्यों में मन लगाने के साथ ही चांदी, चावल लेकर अपने पास रखें और दुर्गा पाठ करें। तीर्थस्थान की यात्रा करने से किसी को न रोकें।
मंत्र : ‘ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः’ का जाप करें।
वैदिक और सदाचार के नियमों का पालन करते हुए, अखरोट व नारियल का किसी धर्मिक स्थान में दान करें। अंधे को भोजन कराने के साथ ही किसी का अहित न करें।
मंत्र : ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का जाप करें
गणेश जी की आराधना करने के साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ कर छोटी कन्याओं से आशीर्वाद लें। शनि से संबंधित उपचार करें।
मंत्र : ‘ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः’ का जाप करें।
कुल देवी का पाठ करने के साथ ही हर रोज गौमूत्र का भी पान करें। तवा, चिमटा, चकला और बेलन धर्मिक स्थान में दान दें।
मंत्र : ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः’ का जाप करें।
प्रातःकाल शहद का सेवन कर हनुमान जी को सिंदूर चोला चढ़ाने के बाद तंदूर की मीठी रोटी बनाकर गरीबों को खिलाएं।
मंत्र : ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ का जाप करें।
पीले फूल भगवान विष्णु जी को अर्पित करने के साथ ही गुरु, साधु और पीपल की पूजा करें। भिखारियों को निराश न लौटने दें।
मंत्र : ‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरूवे नमः’ का जाप करें।
साधु संतों की सेवा करने के साथ ही असत्य न बोलें। अखरोट धर्म स्थान में चढ़ाएं और थोड़ा बहुत घर में लाकर रखें। भैंस, कौओं और मजदूरों को भोजन कराएं।
मंत्र : ‘ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’ का जाप करें।
भैरव मंदिर में तेल और शराब का दान करने के अलावा व दक्षिण दिशा वाले मकान का परित्याग करें। सोना धारण करने के साथ ही चांदी का टुकड़ा भी अपने पास रखें।
मंत्र : ‘ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’ का जाप करें।
संतों की सेवा के साथ ही धर्मिक स्थल पर जाकर पूजन करें। हल्दी पानी से स्नान करें।
मंत्र : ‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरूवे नमः’ का जाप करें ।
सभी का बचाव: इन मंत्रों का जान करेगा आपकी मदद!
ऐसे में कई इस महामारी से बचाव के लिए मंत्रों का सहारा लेने तक की सलाह दे रहे हैं। जिसके तहत बताया जा रहा है कि श्री दुर्गासप्तशती में महामारी व रोग नाश के लिए अलग अलग मंत्र दिए गए हैं। जिनके पाठ से इस महामारी पर काफी हद तक कंट्रोल किा जा सकता है।
श्री मार्कण्डेय पुराण में श्री दुर्गासप्तशती में किसी भी बीमारी या महामारी का उपाय देवी के स्तुति तथा मंत्र द्वारा बताया गया है जो कि अत्यंत प्रभावकारी माने जाते हैं…
महामारी नाश के लिए…
ऊँ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
रोग नाश के लिए…
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥
यह दोनों मंत्र अत्यंत प्रभावकारी माने जाते हैं।
ये कर सकते हैं नाकारात्मक उर्जा दूर…
इस संबंध में पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि कहीं भी आने वाली परेशानी के पीछे एक मुख्य कारण निगेटिव एनर्जी भी होती है। ऐसे में यदि आपको घर पर ही रहने का समय मिला है, तो आपको अपने घरों से नाकारात्मक उर्जा को बाहर कर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाना चाहिए।
इसके अलावा दुर्गा सप्तशती में ये भी दिए हैं उपाय ( फोटो के अनुसार ) …
महामृत्युंजय मंत्र जाप करें: mahamrityunjay mantra
मंत्र : ॐ ह्रों जूं स: त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् भुर्भूव: स्वरों जूं स: ह्रों ॐ॥
मान्यता: किस समस्या में इस मंत्र का कितने बार करें जाप…
– भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है।
-रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है।
-पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है।
– यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है।
पुराणों में भी हैं ये खास उपाय…
आज हम आपको शास्त्रों में वर्णित कुछ ऐसे श्लोक और उनके अर्थ के बारे में बताने जा रहे हैं, पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इनके संबंध में माना जाता है कि इन्हें अपनाने से संक्रमण आपके पास तक नहीं फटकता…
1. न पहनें ऐसे वस्त्र
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्।
विष्णुस्मृति के अनुसार व्यक्ति को एक बार पहना गया कपड़ा धोए बिना फिर से धारण नहीं करना चाहिए। कपड़ा एक बार पहनने पर वह वातावरण में मौजूद जीवाणु और विषाणु के संपर्क में आ जाता है और दोबारा बिना धोए पहनने लायक नहीं रह जाता है।
2. ऐसा में स्नान जरूर करें
चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानम् आचरेयु:।
वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च
विष्णुस्मृति में यह भी कहा गया है कि अगर आप श्मशान से आ रहे हों या फिर आपको उल्टी हो चुकी हो या फिर दाढ़ी बनवाकर और बाल कटवाकर आ रहे हों तो आपको घर में आकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए, नहीं तो आपको संक्रमण का खतरा बना रहता है।
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3. ऐसे कपड़ों से न पोंछें शरीरअपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:। मार्कण्डेय पुराण में लिखा है कि स्नान करने के बाद जरा भी गीले कपड़ों से तन को नहीं पोंछना चाहिए। ऐसा करने से त्वचा के संक्रमण की आशंका बनी रहती है। यानि किसी सूखे कपड़े (तौलिए) से ही शरीर को पोंछना चाहिए।
लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्। धर्मंसिंधु के अनुसार नमक, घी, तेल या फिर कोई अन्य व्यंजन, पेय पदार्थ या फिर खाने का कोई भी सामान यदि हाथ से परोसा गया हो यानि उसको देते समय किसी अन्य वस्तु जैसे चम्मच आदि का प्रयोग न किया गया हो तो वह खाने योग्य नहीं रह जाता है। इसलिए कहा जाता है कि खाना परोसते समय चम्मच का प्रयोग जरूर करें।
घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:।
नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:। वाधूलस्मृति और मनुस्मृति में कहा गया है कि हमें हमेशा ही नाक, मुंह तथा सिर को ढ़ककर, मौन रहकर मल मूत्र का त्याग करना चाहिए। ऐसा करने पर हमारे ऊपर संक्रमण का खतरा नहीं रहता है।