धर्म-कर्म

Jain Muni: जैन मुनियों के अंतिम संस्कार पर क्यों लगती है पैसों की बोली, क्या है इसका रहस्य

Jain Muni: जैन मुनियों के अंतिम संस्कार की प्रथा अन्य धर्मों और हिंदू रीति-रिवाजों के मुकाबले बहुत अलग है

जयपुरDec 20, 2024 / 09:19 am

Sachin Kumar

Jain Muni

Jain Muni: जैन मुनियों का जीवन त्याग और कठोर तपस्या पर आधारित होता है। जब किसी जैन मुनि की मृत्यु हो जाती है, तो उनके अंतिम संस्कार के दौरान बोली लगाने की परंपरा है। इसमें पैसों की बोली लगती है। मान्यता है कि इस प्रक्रिया में श्रद्धालु और मुख्यरूप से जैन धर्म को मानने वाले लोग मुनि के अंतिम संस्कार में शामिल होने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए धनराशि की घोषणा करते हैं। आइए जानें इसके पीछे क्या रहस्य।

धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जैन धर्म में मुनियों का देहावसान एक त्योहार जैसा होता है। क्योंकि मुनि ने अपना पूरा जीवन सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर बिताया होता है। इसके साथ ही पैसों के बोली मुनि के प्रति लोगों के श्रद्धाभाव को दर्शाती है। जैन धर्म में यह सम्मान का विषय माना जाता है। मान्यता है कि मुनि के अंतिम संस्कार में सेवा देने से व्यक्ति पुण्य अर्जित करता है।

हर पड़ाव पर लगती है बोली

जैन मुनियों की शव यात्रा के हर पड़ाव पर बोली लगती है। जैसे कंधा बदलने की बोली, मुखाग्नि देने पर बोली, गुलाल उछालने की बोली, लगभग हर कार्य के लिए बोली लगाई जाती है। मान्यता है कि इनकी अंतिम यात्रा में जिसकी बोली सबसे ज्यादा होती है वहीं बोली को रोक दिया जाता है।
माना जाता है कि मुनि मृत्यु पर बोली लगाकर जो पैसा इकट्ठा होता है। उसे किसी धार्मिक कार्य या किसी अन्य समाज सेवा में खर्च किया जाता है। यह बोली करोड़ों तक पहुंच जाती है। जैन समाज में इस धन का प्रयोग धर्मशालाओं, गौशालाओं, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में किया जाता है।

सामाजिक प्रतिष्ठा

जैन धर्म में पैसों की बोली लगाना एक प्रकार से धार्मिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान जो व्यक्ति सबसे अधिक बोली लगाता है। उसे समाज में सम्मान और पुण्य का अधिकारी माना जाता है।

बोली लगाने का मुख्य उद्देश्य श्रद्धा और समर्पण

इस प्रक्रिया का मूल उद्देश्य मुनि के प्रति श्रद्धा और समर्पण को व्यक्त करना। धर्म कार्यों में योगदान देना साथ ही समाज में त्याग और सेवा के महत्व को बढ़ावा देना है। मान्यता है कि जैन मुनियों के अंतिम संस्कार में लगाई जाने वाली बोली धर्म और समाज के बीच एक संतुलन को बनाए रखती है।
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