भगवान जगन्नाथ का मंदिर हिन्दुओं के चार धामों में से एक है, उड़िसा का जगन्नाथ मंदिर, सनातन धर्म का एक पवित्र तीर्थस्थल हैं । ब्रह्मपुराण में जगन्नाथ पुरी की महिमा का उल्लेख आता है कि बरगद के पेड़ पर चढ़कर या उसके नीचे या समुद्र में, जगन्नाथ के मार्ग में, जगन्नाथ क्षेत्र की किसी गली में या किसी भी स्थल पर, यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे सीधे मोछ की प्राप्ति होती है । धार्मिक मान्यता हैं कि जो कोई भी यहां से निकलने वाली रथयात्रा में भाग लेता हैं उसे सौ यज्ञ करने का फल स्वतः ही मिल जाता हैं ।
उड़िसा के पुरी शहर में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण जी विराजमान हैं, यह उड़िसा के सबसे बड़े और देश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, हिन्दू शास्त्रों में भगवान श्रीकृष्ण जी की नगरी जगन्नाथपुरी या पुरी बताई गयी है । पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा इंद्रघुम्न भगवान जगन्नाथ को शबर राजा के यहां लेकर आये थे, 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में चोलगंगदेव तथा अनंगभीमदेव ने कराया था ।
खास बाद यह है कि मंदिर में स्थापित, मूर्तियां नीम के पेड़ की लकड़ियों की बनी हुई हैं, तथा इन्हें प्रत्येक 14 से 15 वर्ष में बदल दिया जाता है, मंदिर की 65 फुट ऊंची अद्भत पिरामिड़ संरचना, जानकारी से उत्कीर्ण दीवारें, भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण करते स्तंभ, मंदिर की शोभा को चार-चाँद लगाते हुए प्रतीत होते हैं । हर साल यहाँ लाखों भक्त और विदेशी पर्यटक, पवित्र उत्सव ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ में हिस्सा लेने के लिए आते हैं ।
भारत में हिन्दू धर्म के लोगों के का प्रमुख धर्मोत्सव ‘जगन्नाथ’ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर बताया गया है, अगर कोई भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचता है तो उसे सौ यज्ञ करने का फल प्राप्त अपने आप प्राप्त हो जाता हैं । इस दस दिवसीय महोत्सव की तैयारी अक्ष्य तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है ।