- रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।
2.बलरामजी के रथ को तालध्वज कहते हैं। यह रथ लाल और हरे रंग का होता है। देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ कहा जाता है, यह रथ काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष या गरुड़ध्वज कहा जाता है। यह रंग लाल और पीले रंग का होता है। - भगवान जगन्नाथ के रथ नंदीघोष की ऊंचाई 45.6 फिट, बलरामजी के रथ तालध्वज की ऊंचाई 45 फिट और सुभद्राजी के रथ दर्पदलन की ऊंचाई 44.6 फिट होती है।
- तीनों रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाए जाते हैं, जिसे दारु कहते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की परंपरा है। इसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है। लकड़ी काटने के लिए सोने की कुल्हाड़ी से कट लगाने की परंपरा है।
- खास बात है कि तीनों रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है। इन रथों के निर्माण के लिए लकड़ी के चुनाव का काम बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और रथ बनाने का काम अक्षय तृतीया से शुरू होता है।
- तीनों रथ तैयार होने के बाद छर पहनरा अनुष्ठान किया जाता है। इसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की पूजा करते हैं और सोने की झाड़ू से रथ मण्डप और रास्ते को साफ करते हैं।
- आषाढ़ शुक्लपक्ष द्वितीया को रथयात्रा शुरू होती है। ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं। मान्यता है कि भाग्यशाली व्यक्ति को ही रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है।
- जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए गुंडिचा मंदिर पहुंचती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को आड़प-दर्शन कहा जाता है।
- गुंडिचा मंदिर को गुंडिचा बाड़ी भी कहते हैं। यह भगवान की मौसी का घर माना जाता है। इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।
- आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ फिर मुख्य मंदिर की ओर लौटते हैं। रथों की वापसी की इस रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।