इस बड़े उत्सव के दौरान श्रद्धालुओं का भक्ति भाव देखते ही बनता है क्योंकि जिस रथ पर भगवान सवारी करते हैं उसे घोड़े या अन्य पशु नहीं बल्कि श्रद्धालु भक्त ही खींचते हैं । पुरी में श्री जगन्नाथ जी भगवान सपरिवार विशाल रथ पर बैठकर नगर भ्रमण करते हैं, जब वे पूरे नगर का भ्रमण कर वापस लौटते है तब उन्हें पुनः यथास्थान स्थापित किया जाता हैं ।
दस दिनों तक चलने वाली यह रथयात्रा हिन्दूओं द्वारा भारत में मनाए जाने वाले धार्मिक उत्सवों में सबसे बड़ा उत्सव माना जाता हैं । भगवान श्रीकृष्ण के अवतार ‘जगन्नाथ’ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है । जगन्नाथ रथयात्रा आरंभ होने से पूर्व पुराने राजाओं के वंशज पारंपरिक ढंग से सोने के हत्थे वाली झाडू से रथ मार्ग की सफाई करने के बाद विशेष मंत्रोच्चार, विधि विधान के साथ पूजन करने के बाद, जयघोष और ठोल नंगाड़ों की गूंज के साथ श्री भगवान की रथयात्रा शुरू की जाती है ।
जगन्नाथ जी की इस रथयात्रा की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इन रथों में भगवान श्री कृष्ण के साथ श्री राधा जी या रुक्मिणी झी नहीं होतीं, बल्कि रथ में श्री बलराम जी और श्री सुभद्रा जी ही होते हैं ।