कब है जगद्धात्री पूजा (Kab Hai Jagdhatri Puja)
कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि प्रारंभः 09 नवंबर 2024 को रात 10:45 बजेकार्तिक शुक्ल नवमी तिथि समापनः 10 नवंबर 2024 को रात 09:01 बजे
जगद्धात्री पूजाः रविवार 10 नवंबर 2024 को
अक्षय नवमीः रविवार 10 नवंबर 2024 को
जगद्धात्री का ऐसा है स्वरूप (Maa Durga ka Swaroop)
दुर्गा पूजा के ठीक एक महीने बाद जगद्धात्री पूजा की जाती है। यह पर्व विशेष रूप से बंगाल की राजधानी कोलकाता और इसके आसपास के शहरों में मनाया जाता है। जगद्धात्री की पूजा में बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मां जगद्धात्री चार हाथों वाली हैं और इनके हाथों में शंख, चक्र, धनुष और बाण रहते हैं। मां जगद्धात्री की सवारी शेर है। इस दिन शेर पर सवार मां जगद्धात्री देवी की आकर्षक प्रतिमाओं की पंडालों में पूजा की जाती है और बाद में शोभा यात्रा निकालते हुए इनका विसर्जन किया जाता है।4 दिन तक पंडाल में होती है पूजा
मां जगद्धात्री की पूजा पंडाल सजाकर 4 दिन तक की जाती है। मान्यता है कि इस समय मां पंडालों में आकर लोगों की पूजा स्वीकार करती हैं।जगद्धात्री पूजा का विधि-विधान (Maa Jagadhatri Ki Puja Vidhi)
मां जगद्धात्री को भी दुर्गा जी का स्वरूप माना जाता है। इसलिए जगद्धात्री की पूजा दुर्गा पूजा जैसे ही की जाती है। इसमें खासतौर पर मनुष्य को अपनी ज्ञाननेद्रियों पर नियंत्रण रखने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस उत्सव को लेकर मान्यता है कि जगद्धात्री पूजा से अहंकार का नाश होता है। इस त्योहार में जगद्धात्री देवी की बड़ी सी प्रतिमा को पंडाल में विराजमान करते हैं। इसके बाद मां की इस प्रतिमा का पूरा श्रृंगार किया जाता है। सुंदर लाल साड़ी तरह-तरह के जेवर और फूलों की माला से सजाते हैं और पूजा करते हैं।
जगद्धात्री मां की कथा (Jagadhatri ki katha)
पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर पर विजय पाने के बाद देवताओं को अहंकार हो गया था। वो देवी दुर्गा की शक्तियों को भूलकर अहंकारी जैसा व्यवहार करने लगे, उनको सही रास्ते पर लाने के लिए मां दुर्गा ने जगद्धात्री अवतार लिया और देवताओं को एक तिनका हटाने के लिए कहा। लेकिन वो उसे हटा नहीं सके और उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ। इन्हीं जगद्धात्री की इस दिन पूजा की जाती है।एक अन्य कथा के अनुसार देवी ने हस्तिरूपी करिंद्रासुर नाम के असुर का वध किया था, जिसके बाद देवी के वाहन सिंह के नीचे हाथी की छवि भी होती है।
दुर्गा मां लेती हैं अवतार
ऐसा माना जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत संत रामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदा देवी ने रामकृष्ण मिशन में की थी। वे भगवान के अवतार में विश्वास रखती थी। इसके बाद दुनिया के हर कोने में मौजूद रामकृष्ण मिशन संस्था में इस त्योहार को मनाया जाने लगा। लोग इस त्योहार को मां दुर्गा के अवतार की खुशी में मानते है। मन जाता है देवी, पृथ्वी पर बुराई को नष्ट करने और अपने भक्तों को सुख शांति देने के लिए आती हैं। यह भी पढ़ेः क्या आप जानते हैं अक्षय नवमी को आंवला नवमी क्यों कहते हैं, जानें पूरी कहानी डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।