लोकदेवता वीर तेजा जी महाराज
वीर तेजाजी महाराज को लोकदेवता के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म नागौर जिले के खड़नाल गांव में एक जाट परिवार में हुआ था। तेजाजी रामकुंवरी और थिरराज के पुत्र थे। माना जाता है कि उनके पिता थिरराज गांव के मुखिया थे। तेजाजी महाराज को लेकर कथाएं चलीती है कि वह बचपन से बहुत ही साहसी और अवतारी पुरुष थे। उनको बचपन से गायों के प्रित बहुत लगाव था।भाषक नाग को दिया वचन
धार्मिक कथाओं के अनुसार एक बार तेजाजी अपनी बहन पेमल को लेने के लिए उनकी ससुराल गए थे। जब वह अपनी बहन के पास पहुंचे तो पता चला कि मेणा नामक डाकू पेमल की ससुराल से गायों को लूट ले गया। इसको सुनकर तेजाजी क्रोधित हुए और अपने साथी के साथ गायों को छुड़ाने के लिए चल देते हैं। तभी रास्ते में उनके घोड़े के सामने एक भाषक नाम का नाग आकर खड़ा हो जाता है। मान्यता है कि वह नाग वीर तेजाजी को डसना चहता था। भाषक को रास्ते में खड़ा देखकर तेजा जी ने उसे वचन दिया कि हे भाषक नाग, अभी मेरा रास्त छोड़ दो, क्योंकि मैं अभी मेणा डाकू से अपनी बहन की गायों को छुड़ाने जा रहा हूं। मैं वचन देता हूं कि गायों को छुड़ाने के बाद यहीं आऊंगा और तब मुझे डस लेना। लेकिन अभी मेरा रास्ता छोड़ दो।
वीर तेजा वचनबद्धता का प्रतीक
इसके बाद भाषक ने तेजाजी का रास्ता छोड़ दिया। इसके बाद उनका मेणा डाकू से भयंकर युद्ध हुआ। तेजाजी में डाकू को परास्त करके सभी गायों को उसके चंगुल से छुड़ा कर अपनी बहन के घर भेज दिया। लेकिन तेजाजी वचन वद्ध होने के कारण अपने घोड़े पर लहूलुहान अवस्था में भाषक नाग की बांबी पर गए। जब भाषक ने तेजाजी को घायल अवस्था में देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया। उसने तेजा से कहा कि तुम्हारा पूरा शरीर घायल है ऐसे में मैं अपना दंश कहां मारूं? तब वीर तेजा ने अपनी जीभ बाहर निकालते हुए कहा कि ‘ हे भाषक नाग, मेरी जीभ पूरी तरह सुरक्षित है। आप यहां अपना दंश मारकर मुझे डस लो।