हर इनसान चाहता है कि उसका अपना घर यानी आशियाना हो। यह दीगर बात है कि उसे अपने घर का सुख मिलेगा या नहीं। दरअसल, होता यह है कि हर व्यक्ति किसी भी तरह कर्ज से या फर्ज से अपना घर बनाना चाहता है, इसके लिए वह अथक प्रयास भी करता है। किसी का यह सपना पूरा हो पाता है और किसी का नहीं। कई मर्तबा तो यह भी देखा गया है कि चाह और संसाधन यानी धन और सुविधा होने के बावजूद कोई व्यक्ति अपने घर के सपने को साकार नहीं कर सकता। और, यह भी कि किसी के पास धन नहीं होता, न सुविधाएं और वह किसी तरह अपना घर बनाकर उसका सुख भोगता है।
इनके अलावा कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन्हें इस दिशा में कुछ करने की दरकार भी महसूस नहीं होती, क्योंकि उन्हें विरासत में सुविधाओं से युक्त आवास मिल जाता है, तो कुछ विरासत में मिलने के बावजूद ताजिंदगी अपने प्रयासों से एक और भवन बनवाने की कोशिश करते देखे जाते हैं। यह देख लोगों को, खासकर ऐसे सफल-असफल लोगों के पहचान वालों को आश्चर्य होता है। खैर, ऐसा क्यों होता है, यह विचारणीय प्रश्न है और इसका उत्तर है ज्योतिष में। दरअसल, किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में विद्यमान ग्रह इत्यादि योग से फलादेश किया जा सकता है कि अमूक जातक अपने सपनों का घर बना पाएगा या नहीं। आइए करें चर्चा।
कुंडली के भाव एवं ग्रह स्थिति
किसी जातक को अपना मकान बनाने में सफलता मिलेगी या नहीं, इसके लिए सबसे अहम माना जाता है कुंडली का चतुर्थ भाव। यह भाव भूमि-भवन-संपत्ति का भाव होता है। यह भाव जितना बली होगा, उतने ही मकान निर्माण होने के योग प्रबल होंगे। इसके साथ ही इस भाव का स्वामी यानी चतुर्थेश के साथ इस भाव में बैठा ग्रह।
किसी जातक को अपना मकान बनाने में सफलता मिलेगी या नहीं, इसके लिए सबसे अहम माना जाता है कुंडली का चतुर्थ भाव। यह भाव भूमि-भवन-संपत्ति का भाव होता है। यह भाव जितना बली होगा, उतने ही मकान निर्माण होने के योग प्रबल होंगे। इसके साथ ही इस भाव का स्वामी यानी चतुर्थेश के साथ इस भाव में बैठा ग्रह।
इस भाव में जो अंक लिखा हो उस राशि का स्वामी ग्रह इस भाव का स्वामी हुआ, उसे ही चतुर्थेश कहेंगे। वैसे, इस भाव का स्वामी मंगल है, जिसकी स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इस भाव के साथ ही भूमि और भवन का कारक मंगल ही होता है। वैसे, यदि मंगल अकेला इस भाव में हो तो भी अच्छे परिणाम नहीं देता। ऐसा जातक मकान हो भी जाए तो परेशान ही रहता है। इसलिए जरूरी है कि मंगल शुभ और बली हो। साथ ही, निर्माण के कारक ग्रह शनि से इस भाव का संबंध भी शुभ हो। तब जातक को मकान बनाने और उसका सुख भोगने में बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता।
इसके साथ ही लग्न जो जातक के विवेक को दर्शाता है, के साथ ही द्वितीय भाव यानी धन भाव, तृतीय यानी पराक्रम का भाव, नवम यानी भाग्य भाव एवं एकादश यानी आय का भाव भी शुभ एवं बली होना जरूरी है। कारण यह है कि यदि संसाधन होने के बावजूद व्यक्ति विवेक से कार्य नहीं करे तो सफल नहीं होता, तो दूसरा भाव अच्छा होना इसलिए जरूरी है कि बिना धन के मकान कैसे बनेगा। साथ ही, भाग्य भाव भाग्य को प्रबल करे तो मकान बनने में बाधाएं दूर होती हैं।
इसी तरह, आवास निर्माण के लिए इनकम यानी आय का होना भी आवश्यक है, यानी आय भाव का शुभ एवं बली होना भी जरूरी है। यदि इस योग के अंतर्गत एकादशेश चतुर्थ भाव में स्थित हो तो एक से अधिक निवास बनते हैं, इसके विपरीत यदि चतुर्थेश एकादश भाव में हो तो जातक के कार्यक्षेत्र का संबंध भूमि से बनने का द्योतक है। यदि चतुर्थ, अष्टम और एकादश भाव का शुभ संबंध बन रहा हो तो ऐसा जातक जीवन में अपना भवन जरूर बनाता है।
कब बनेगा मकान
ज्योतिष में मंगल को भूमि एवं भवन के साथ चतुर्थ भाव का कारक माना गया है, तो शनि को किसी भी प्रकार के निर्माण का कारक है। इसलिए मंगल और शनि की दशा एवं अंतर्दशा मकान बनाने के समय को बताती है। यानी जिस अवधि में मंगल एवं शनि का संबंध चतुर्थ यानी मकान के भाव से या फिर चतुर्थेश से बनता है उस अवधि में मकान बनने के योग होते हैं।
ज्योतिष में मंगल को भूमि एवं भवन के साथ चतुर्थ भाव का कारक माना गया है, तो शनि को किसी भी प्रकार के निर्माण का कारक है। इसलिए मंगल और शनि की दशा एवं अंतर्दशा मकान बनाने के समय को बताती है। यानी जिस अवधि में मंगल एवं शनि का संबंध चतुर्थ यानी मकान के भाव से या फिर चतुर्थेश से बनता है उस अवधि में मकान बनने के योग होते हैं।
विदेश में घर
जब चतुर्थ भाव या चतुर्थेश का संबंध द्वादश भाव या द्वादशेश से बनता है, तो ऐसा जातक अपने जन्मस्थान से दूर अन्य शहर में या विदेश में भी अपना मकान बना सकता है। इसमें यह देखना आवश्यक है कि मंगल, शनि, चतुर्थेश, द्वादशेश और बृहस्पति का संबंध कैसा बन रहा है। इनके शुभ होने की स्थिति में विदेश में सपनों का घर बनता है।
जब चतुर्थ भाव या चतुर्थेश का संबंध द्वादश भाव या द्वादशेश से बनता है, तो ऐसा जातक अपने जन्मस्थान से दूर अन्य शहर में या विदेश में भी अपना मकान बना सकता है। इसमें यह देखना आवश्यक है कि मंगल, शनि, चतुर्थेश, द्वादशेश और बृहस्पति का संबंध कैसा बन रहा है। इनके शुभ होने की स्थिति में विदेश में सपनों का घर बनता है।
पैतृक संपत्ति
कई जातक मिल जाएंगे जिनके पैतृक संपत्ति तो काफी होती है, लेकिन वे उसके सुख से वंचित रह जाते हैं। ऐसे लोगों के किस्से बन जाते हैं कि इतनी संपत्ति होते हुए भी वे उससे वंचित कर दिए गए या अपने कर्मों से उसे गंवा दिया। ऐसे में यह देखना आवश्यक है कि कुंडली में बृहस्पति का अष्टम भाव और अष्टमेश का कैसा संबंध निर्मित हो रहा है। यदि यह संबंध शुभ है तो ऐसे जातक अवश्य पैतृक संपत्ति प्राप्त करते हैं और उसका सुख भी भोग सकते हैं। इसके विपरीत फल ऐसे जातक को मिलते हैं जिसकी कुंडली में बृहस्पति का अष्टम भाव से अशुभ संबंध बन रहा हो।
कई जातक मिल जाएंगे जिनके पैतृक संपत्ति तो काफी होती है, लेकिन वे उसके सुख से वंचित रह जाते हैं। ऐसे लोगों के किस्से बन जाते हैं कि इतनी संपत्ति होते हुए भी वे उससे वंचित कर दिए गए या अपने कर्मों से उसे गंवा दिया। ऐसे में यह देखना आवश्यक है कि कुंडली में बृहस्पति का अष्टम भाव और अष्टमेश का कैसा संबंध निर्मित हो रहा है। यदि यह संबंध शुभ है तो ऐसे जातक अवश्य पैतृक संपत्ति प्राप्त करते हैं और उसका सुख भी भोग सकते हैं। इसके विपरीत फल ऐसे जातक को मिलते हैं जिसकी कुंडली में बृहस्पति का अष्टम भाव से अशुभ संबंध बन रहा हो।
बहरहाल, ये तो हुए कुछ ऐसे योग जो किसी जातक का अपना घर बनेगा या नहीं, बनेगा तो कब, कहां और कैसा इस प्रश्नों का उत्तर देते हैं। इसके अलावा इस कार्य से जुड़ी चतुर्थांश और नवांश कुंडली का भी अध्ययन बारीकी से करने के बाद ही उचित फलादेश किया जा सकता है।