आसमान में ग्रहों की कक्षा इस प्रकार हैं-
1- शनि 2- गुरु 3- मंगल 4- रवि 5- शुक्र 6- बुध 7- चंद्रमा ।
इनमें हर चौथा ग्रह अगले वार का मालिक होता है जैसे, रविवार के बाद उससे चौथे चन्द्रमा का, फिर चन्द्र से चौथे मंगल का क्रमश: वार आता-जाता है ।
वारों के अधिदेवता
ग्रहों को मूल रूप से विष्णु या महादेव के अंश से उत्पन्न समझा जाता हैं । सूर्य की पूजा, नमस्कार, अर्घ्य देना तो खास तौर पर विष्णु और शिव ही क्यों, सब तरह की पूजा में अनिवार्य कहा गया है । वारपति ग्रह और अवतारों का संबंध इस तरह से हैं-
1- सूर्य- रामावतार,
2- चन्द्र- श्रीकृष्णावतार,
3- मंगल- नृसिंह अवतार,
4- बुध- बुद्ध अवतार,
5- गुरु-वामन अवतार,
6- शुक्र- परशुराम अवतार,
7- शनि- कर्म अवतार आदि ।
इससे हम आसानी से समझ सकते हैं कि सब ग्रह आदि देव विष्णु या शिव जो भी नाम दें, उसी से निकले हैं । वेदों के अनुसार ऐसी मान्यता हैं कि इन देवताओं की पूजा श्रद्धा पूर्वक की जाये तो प्रसन्न होकर सभी इच्छित मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं ।
रविवार का वारपति सूर्य स्वयं जीवन का आधार होने से विष्णु रूप कहा गया है । अत: उपाय के रूप में ’आरोग्यं भास्करादिच्छेत्’ के नियम से रोग के प्रकोप को कम करने, स्वस्थ रहने, दवा का अनुकूल प्रभाव पैदा करने और आयु की रक्षा तथा आत्मबल, तन व मन की ताकत को देने वाला सूर्य है । जन्म का कारण होने से सविता, प्रसविता, प्रसव कराने वाला परिवार वृद्धि का देवता हैं । जो लोग प्रजनन अंगों के विकार के कारण, अज्ञात कमी की वजह से औलाद का सुख नहीं देख पाते हैं, उनके लिए सूर्य की उपासना बहुत मुफीद होती है । सूर्य के लिए गायत्री मंत्र, केवल ओम् नाम या ‘ओम् घृणि: सूर्य आदित्य:’ का जप करना, जल चढ़ाना, माता पिता या बड़ों की सेवा सहायता करने से लाभ मिलता हैं ।