धर्म-कर्म

माथे पर भस्म और शरीर में रुद्राक्ष कैसे करते हैं आपकी सुरक्षा जानें इनके धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

– स्वास्थ्य सुरक्षा से लेकर ब्रेन व हार्ट को तक करते हैं मज़बूत

Nov 05, 2022 / 12:34 pm

दीपेश तिवारी

सनातन धर्म में यज्ञ के बाद भस्म वा विभूति को माथे पर लगाना शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा में भस्म (Bhasam) का प्रयोग किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भस्म (Bhasam) भगवान शिव को काफी प्रिय होती है। भस्म को भस्मी, भभूत या विभूति के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान शिव का श्रंगार करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। बहुत से लोग अपने माथे पर भस्म (Bhasam) लगाते हैं। भस्म लगाना जहां धार्मिक दृष्टि से काफी शुभ माना गया है तो वहीं स्वास्थ्य के लिए भी यह काफी लाभकारी साबित होता है। इसके प्रयोग से शरीर के किटाणु नष्ट हो जाते हैं। जानिए भस्म लगाने के फायदे…

भस्म लगाने के धार्मिक कारणों की बात करें तो इससे मन एकाग्र होता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपने शरीर पर भस्म (Bhasam) का प्रयोग करता है उससे नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है। भस्म लगाने से इंसान और भी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है।

मान्यता है कि इसके इस्तेमाल से पापों से मुक्ति मिल जाती है। मन शांत होता है। खासकर सोमवार के दिन विभूति लगाने से मनुष्य को अपने कार्यों में सफलता हासिल होती है।

साथ ही ये भी माना जाता है कि शिवलिंग पर भस्म (Bhasam) लगाने से शिव की कृपा प्राप्त होती है और राहु के दोष होने पर शिव को भस्म अर्पित करके माथे पर उसका तिलक लगाने से यह दोष दूर होते हैं। मस्तिष्क, गले, छाती, कंधों और ह्रदय पर भस्म लगाया जाता है। वैसे तो बाजार में भी भस्म (Bhasam) उपलब्ध होते हैं, लेकिन लोग अपने घर पर भी इसे बना सकते हैं। गाय के गोबर में घी मिलाकर इसे तैयार किया जा सकता है। इसे बनाने का दूसरा तरीका है चावल की भूसी से इसे तैयार करना। किसी यज्ञ के पूरा होने के बाद इसका इस्तेमल करना ज्यादा शुभ माना जाता है।

वैज्ञानिक कारण
भस्म (Bhasam) लगाने के कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं और यह स्वास्थ्य कारणों से भी काफी शुभ मानी जाती है। माना जाता है कि आज्ञा चक्र पर भस्म लगाने से शरीर के चक्र जागृत हो जाते हैं, जिससे निगेटिव एनर्जी अंदर नहीं आ पाती और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी बेहतर होता है। वहीं भस्म शरीर में मौजूद अतिरिक्त नमी को सोख लेती है और आपको सर्दी से बचाती है।

इसे लगाने से मौसम का विपरित प्रभाव नहीं पड़ता है। त्वचा संबंधी रोगों के लिए भी भस्म काफी लाभदायक मानी जाती है। भस्म (Bhasam) में शरीर के अंदर स्थित दूषित द्वव्य को सोखने की क्षमता होती है। इसी कारण से शरीर के संधि, कपाल, छाती के दोनों हिस्से तथा पीठ आदि पर भस्म का लेप लगाने से कई तरह के चर्म रोग नहीं होते हैं।

रुद्राक्ष (Rudraksha) पहनने से ब्रेन-हार्ट होते हैं स्ट्रॉन्ग: जानें प्रकार
भगवान शिव के प्रतिक माने जाने वाले रुद्राक्ष (Rudraksha) कुल 16 प्रकार के होते हैं और उनके पहनने से अनेक लाभ होते हैं। रूद्राक्ष (Rudraksha) को धारण करने वाले के जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शिवमहापुराण ग्रंथ में कुल सोलह प्रकार के रूद्राक्षों (Rudraksha) का जिक्र हैं, इनमें सभी के देवता, ग्रह, राशि एवं कार्य भी अलग-अलग बताएं है।

रुद्राक्ष (Rudraksha) के संबंध में मान्यता है कि इसकी माला पहनने से न सिर्फ ब्रेन और हार्ट स्ट्रॉन्ग होते हैं, बल्कि ब्लड प्रेशर भी नॉर्मल बना रहता है, क्योंकि रुद्राक्ष मेंमेडिसिनल प्रॉपर्टीज़ होती हैं, इसी वजह से यह हिंदू धर्म में पूजनीय है। साथ ही यह एंटैसिड और एंटी-इंफ्लेमेटरी भी है।

1- एक मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे पहनने से शोहरत, पैसा, सफलता प्राप्ति और ध्‍यान करने के लिए सबसे अधिक उत्तम होता है। इसके देवता भगवान शंकर, ग्रह- सूर्य और राशि सिंह है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

2- दो मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे आत्‍मविश्‍वास और मन की शांति के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान अर्धनारिश्वर, ग्रह- चंद्रमा एवं राशि कर्क है।
मंत्र- ।। ॐ नम: ।।

3- तीन मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे मन की शुद्धि और स्‍वस्‍थ जीवन के लिए पहना जाता है। इसके देवता अग्नि देव, ग्रह- मंगल एवं राशि मेष और वृश्चिक है।

मंत्र- ।। ॐ क्‍लीं नम: ।।


4- चार मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे मानसिक क्षमता, एकाग्रता और रचनात्‍मकता के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता ब्रह्म देव, ग्रह- बुध एवं राशि मिथुन और कन्‍या है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।


5- पांच मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे ध्‍यान और आध्‍यात्‍मिक कार्यों के लिए पहना जाता है। इसके देवता भगवान कालाग्नि रुद्र, ग्रह- बृहस्‍पति एवं राशि धनु व मीन है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

6- छह मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे ज्ञान, बुद्धि, संचार कौशल और आत्‍मविश्‍वास के लिए पहना जाता है। इसके देवता भगवान कार्तिकेय, ग्रह- शुक्र एवं राशि तुला और वृषभ है।
मंत्र : ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

7- सात मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे आर्थिक और करियर में विकास के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता माता महालक्ष्‍मी, ग्रह- शनि एवं राशि मकर और कुंभ है।
मंत्र- ।। ॐ हूं नम:।।

8- आठ मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे करियर में आ रही बाधाओं और मुसीबतों को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान गणेश, ग्रह- राहु है।
मंत्र- ।। ॐ हूं नम:।।

9- नौ मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे ऊर्जा, शक्‍ति, साहस और निडरता पाने के लिए पहना जाता है। इसके देवता माँ दुर्गा, एवं ग्रह- केतु है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

10- दस मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे नकारात्‍मक शक्‍तियों, नज़र दोष एवं वास्‍तु और कानूनी मामलों से रक्षा के लिए धारण किया है। इसके देवता भगवान विष्‍णु जी हैं।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

11- ग्‍यारह मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे आत्‍मविश्‍वास में बढ़ोत्तरी, निर्णय लेने की क्षमता, क्रोध नियंत्रण और यात्रा के दौरान नकारात्‍मक ऊर्जा से सुरक्षा पाने के लिए पहना जाता है। इसके देवता हनुमान जी, ग्रह- मंगल एवं राशि मेष और वृश्चिक है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

12- बारह मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे नाम, शोहरत, सफलता, प्रशासनिक कौशल और नेतृत्‍व करने के गुणों का विकास करने के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता सूर्य देव, ग्रह- सूर्य एवं राशि सिंह है।
मंत्र- ।। ॐ रों शों नम: ऊं नम:।।

13- तेरह मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे आर्थिक स्थिति को मजबूत करने, आकर्षण और तेज में वृद्धि के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता इंद्र देव, ग्रह- शुक्र एवं राशि तुला और वृषभ है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम:।।

14- चौदह मुखी रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे छठी इंद्रीय जागृत कर सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करने के उद्देश्य से धारण किया जाता है। इसके देवता शिव जी, ग्रह- शनि एवं राशि मकर और कुंभ है।
मंत्र- ।। ॐ नम:।।

15- गणेश रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे ज्ञान, बुद्धि और एकाग्रता में वृद्धि, सभी क्षेत्रों में से सफलता के लिए, एवं केतु के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान गणेश जी हैं।
मंत्र- ।। ॐ श्री गणेशाय नम:।।

16- गौरी शंकर रुद्राक्ष (Rudraksha) – इसे परिवार में सुख-शांति, विवाह में देरी, संतान नहीं होना और मानसिक शांति के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान शिव-पार्वती जी, ग्रह- चंद्रमा एवं राशि कर्क है।
मंत्र- ।। ॐ गौरी शंकराय नम:।।

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