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guru purnima 2019 : सभी संकटों को हर लेता है, गुरूगीता का यह सिद्ध मंत्र

guru purnima पर्व पर गुरुगीता के इस मंत्र के पाठ से सारी बाधाओं का नाश हो जाता है

Jun 27, 2019 / 05:31 pm

Shyam

guru purnima 2019

guru purnima 2019 : सभी संकटों को हर लेता है, गुरूगीता का यह सिद्ध मंत्र

गुरुपूर्णिमा पर्व 2019 में 16 जुलाई दिन मंगलवार को मनाया जायेगा। गुरु को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है और गुरु की पूजा ब्रह्मा, विष्णु और आदि देव महादेव के रुप में की जाती है। कहा जाता है जिस शिष्य के ऊपर गुरु की कृपा हो जाएं उसका मनुष्य जीवन सफल माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुगीता के इस सर्वसंकटहारी गुरु मंत्र का श्रद्धापूर्वक जप किया जाएं तो गुरु के अनुदान वरदान पात्र शिष्य के ऊपर बरसने लगते हैं।

 

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भगवान् सदाशिव कहते हैं-

अनेन प्राणिनः सर्वे गुरूगीता जपेन तु।
सर्वसिद्धिं प्रान्पुवन्ति भुक्तिं मुक्तिं न संशयः॥
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं धर्म्यं सांख्यं मयोदितम्।
गुरूगीतासमं नास्ति सत्यं सत्यं वरानने॥

अर्थात गुरूगीता के जप अनुष्ठान से सारे प्राणी सभी सिद्धियां प्राप्त करते हैं, भोग एवं मोक्ष पाते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है। भगवान् सदाशिव पूरी दृढ़ता से माता पार्वती से कहते हैं- हे वरानने! यह मेरे द्वारा प्रकाशित धर्मयुक्त ज्ञान है। यह सत्य, सत्य और पूर्ण सत्य है कि गुरूगीता के समान अन्य कुछ भी नहीं है॥

 

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एको देव एकधर्म एकनिष्ठा परं तपः।
गुरोः परतरं नान्यत् नास्ति तत्त्वं गुरोः परम्॥
माता धन्या पिता धन्यो धन्यो वंशः कुलं तथा।
धन्या च वसुधा देवि गुरूभक्तिः सुदुर्लभा॥
शरीरमिन्द्रियं प्राणश्चार्थस्वजनबांधवाः।
माता पिता कुलं देवि! गुरूरेव न संशयः॥

अर्थात- एक ही देव है, एक ही धर्म है, एक ही निष्ठा और यही परम तप है कि गुरू से परे कोई भी तत्त्व नहीं है, गुरू से श्रेष्ठ कोई तत्त्व नहीं है, गुरू से अधिक कोई तत्त्व नहीं है। हे देवि! गुरूभक्त गुरुभक्त को धारण करने वाले माता- पिता, कुल एवम् वंश धन्य होते है, क्योंकि गुरुभक्त्ति अति दुर्लभ है। हे देवि! शरीर- इन्द्रिय, प्राण, धन, माता सभी सदगुण की चेतना का ही तो विस्तार है, इसमें कोई संशय नहीं है।

 

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भगवान् सदाशिव के ये वचन अकाटय है। कोई भी व्यक्ति इन्हें अपने जीवन में परख सकता है। बस, बात गुरुगीता की साधना करनें की है। युं तो साधनाएं बहुत है, हर एक का अपना महत्त्व है। सभी के अपने- अपने विधान एवं अपने सुफल है, लेकिन लेकिन इन सब की सीमाएं भी है। प्रत्येक साधना अपना अभीष्ट पुरा करके चुक जाती है। परन्तु गुरुगीता का विस्तार व्यापक है, इससे काम्य अभीष्ट तो पुर्ण होते है, साथ ही वृत्तियां भी निर्मल होती है। अंत में सदगुरु एवम् परमात्मा दोनों की प्राप्ति होती है। यह बात इतनी खरी है कि जब कोई जहां चाहे इसे आजमा सकता है।

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