भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से हुआ जन्म
कहा जाता हैं कि मानव जाति के इतिहास में सबसे महान दिन के रूप में अंकित गीता जयंती यानी की श्रीमद्भगवत गीता का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से अब से करीब 5152 साल पहले कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में हुआ था, वही गीता आज भी उसकी शरण में आने वाली मानवता के मार्ग को पूर्णता प्रदान करके श्रेष्ठ मार्ग की ओर चलाती हैं । इस परम पवित्र ग्रंथ में छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्यमात्र के लिए अति बहुमूल्य हैं । जो कोई भी इसका अध्ययन करता हैं उसके जीवन में आमुलचूल परिवर्तन होने लगता हैं, पग पग पर उसे प्रकाश रूप मार्गदर्शन प्राप्त होता हैं ।
मोक्ष की होती हैं प्राप्ति
भगवानव श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के ज्ञान के माध्यम से कर्म का महत्व जन जन में स्थापित किया । मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती के साथ मोक्षदा एकादशी भी मनाई जाती है । कहा जाता हैं कि इस दिन मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य के मोक्ष प्राप्ति के योग बन जाते हैं ।
पूजा विधि
गीता जयन्ती के दिन स्नान करने के बाद पूजा स्थल में पीले रंग के वस्त्र के आसन पर श्रीमदभगवद गीता ग्रंथ को स्थापित करें, स्थापित करने के बाद हल्दी, कुमकुम, अक्षत, धुप दीप, सुगन्धित ताजे पुष्पों से विधिवत पूजन करें, भगवान श्रीकृष्ण के निमित्त नैवेद्य का भोग भी लगायें । विधि विधान से पूजन करने के बाद शांत चित्त होकर श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करें । पाठ पूर्ण होने के बाद यथा शक्ति निर्धनों को दान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती हैं, मनवांछित शुभ फलों की प्राप्ति होती है ।
गीता जयंती महत्व
श्रीमद्भगवतगीता आत्मा एवं परमात्मा के स्वरूप को व्यक्त करती है, श्रीकृष्ण भगवान के उपदेश रूपी विचारों से मनुष्य को उचित बोध कि प्राप्ति होती है यह आत्म तत्व का निर्धारण करता है उसकी प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, एवं इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति से अनेक विकारों से मुक्त हुआ जा सकता है । आज के इस युग में जब मनुष्य भोग विलास, भौतिक सुखों, काम वासनाओं में जकडा़ हुआ है और एक दूसरे का अनिष्ट करने में लगा है, ऐसे में श्रीमद्भगवत गीता का स्वाध्याय करके भय, राग, द्वेष एवं क्रोध से हमेशा के लिए मुक्त हो सकता हैं ।