इनमें बसें शास्त्र, श्रुति,गीता ॥2।। शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥32।। हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी॥4॥ पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयनविशाला ॥5।।
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई॥6।। कामधेनु तुम सुर तरुछाया ।
निराकार की अदभुत माया॥7।। तुम्हरी शरण गहै जोकोई ।
तरै सकल संकट सोंसोई ॥8॥ सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥9।।
जो शारद शत मुखगुण गावें ॥10।। चार वेद की मातुपुनीता ।
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥11।। महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥12॥ सुमिरत हिय में ज्ञानप्रकासै ।
आलस पाप अविघा नासै॥13।।
काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥14।। ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरतातेते ॥15।। तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥16॥ महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जै जै जै त्रिपदाभय हारी ॥17।।
तुम सम अधिक नजग में आना ॥18।। तुमहिं जानि कछु रहैन शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहैन क्लेषा ॥19।। जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई॥20॥ तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई।
माता तुम सब ठौरसमाई ॥21।।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥22।। सकलसृष्टि की प्राण विधाता।
पालक पोषक नाशक त्राता॥23।। मातेश्वरी दया व्रत धारी।
तुम सन तरे पतकीभारी ॥24॥ जापर कृपा तुम्हारी होई।
तापर कृपा करें सबकोई ॥25।।
रोगी रोग रहित हैजावें ॥26।। दारिद मिटै कटै सबपीरा ।
नाशै दुःख हरै भवभीरा ॥27।। गृह कलेश चित चिंताभारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥28।। संतिति हीन सुसंतति पावें।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें॥29।
यम के दूत निकटनहिं आवें ॥30।। जो सधवा सुमिरें चितलाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥31।। घर वर सुख प्रदलहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रतधारी ॥32॥ जयति जयति जगदम्ब भवानी।
तुम सम और दयालुन दानी ॥33।।
सो साधन को सफलबनावें ॥34।। सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी।
लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥35। । अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥36।। ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी।
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥37।।
सो सो मन वांछितफल पावें ॥38।। बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।
धन वैभव यश तेजउछाऊ ॥39।। सकल बढ़ें उपजे सुख नाना।
जो यह पाठ करैधरि ध्याना ॥40
॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जोकोय ।तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्रीकी होय ॥