गंगा सप्तमी पर विशेष पूजन
दोपहर के समय अपने घर में ही उत्तर दिशा में एक लाल कपड़े पर गंगा जल मिले कलश की स्थापना करें। ऊँ गंगायै नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए जल में थोड़ा सा गाय का दुध, रोली, चावल, शक्कर, इत्र एवं शहद मिलाएं। अब कलश में अशोक या फिर आम के 5-7 पत्ते डालकर उस पर एक पानी वाला नारियल रख दें। अब उक्त कलश का पंचोपचार पूजन करें। गाय के घी का दीपक, चंदन की सुगंधित धूप, लाल कनेर के फूल, लाल चंदन, ऋतुफल एवं गुड़ का भोग लगावें।
उपरोक्त विधि से पूजन करने के बाद मां गंगा के इस मंत्र- ऊँ गं गंगायै हरवल्लभायै नमः का 108 बार जप जरूर करें। इस दिन अपने सभी तरह के दुखों एवं पापों से मुक्ति पाने के लिए अपने ऊपर से 7 लाल मिर्ची बहते हुये जल में प्रवाहित कर दें।
इसलिए मनाया जाता है गंगा सप्तमी का पर्व
शास्त्रों में कथा आती है कि एक बार सगर वंसज ऋषि भगीरथ ने अपने कुल के 60 हजार पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति और शांति सद्गति की कामना से मां गंगा को स्वर्ग लोग से धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया था। भगीरथ के कठोर तप से मां गंगा धरती पर आने के लिए तैयार हो गई, और मां गंगा के तीव्र वेग को भगवान शंकर अपनी जटा में धारण कर लिया था। लेकिन गंगा जी का वेग इतना तीव्र था कि शंकर जी के धारण करने के बाद भी गंगा की तेज धार के कारण महर्षि जाह्नु का आश्रम बर्बाद हो गया, और क्रोध में आकर महर्षि जाह्नु ने गंगा के जल को पूरा पी लिया।
बाद में भगीरथ एवं देवताओं के निवेदन पर महर्षि जाह्नु ने गंगा को मुक्त कर दिया। जिस दिन गंगा मुक्त हुई उस दिन वैशाख मास की सप्तमी तिथि थी, तभी से गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाने लगा, और मां गंगा को एक नया नाम भी दिया गया- “जाह्न्वी” इस तरह गंगा जाह्न्वी भी कहलाने लगी।
अपने घर पर ही करें ये उपाय
– गंगा सप्तमी के दिन सुबह एवं शाम के समय गंगाजल मिले जल से स्नान करने के बाद अपने घर के पूजा स्थल पर एक कटोरी में थोड़ा सा गंगाजल रखें। अब उसी गंगाजल के बीच में गाय के घी का एक दीपक दो बत्ती वाला जलावें और विधिवत गंगाजल का विधिवत पूजन करें। गंगा मैया की कृपा से सभी कामनाएं पूरी होगी।
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