scriptDurga Puja 2020 : इस नवरात्रि दुर्गा सप्‍तशती की मदद से मां दुर्गा को करें प्रसन्न, पाएं मनचाहे वरदान | Durga Puja 2020 celebration in india with Durga saptshati | Patrika News
धर्म-कर्म

Durga Puja 2020 : इस नवरात्रि दुर्गा सप्‍तशती की मदद से मां दुर्गा को करें प्रसन्न, पाएं मनचाहे वरदान

जानें दुर्गा सप्‍तशती की साधना, व्रत कथा, पूजा विधि और महत्‍व…

Oct 16, 2020 / 10:18 pm

दीपेश तिवारी

Durga Puja 2020 celebration in india with Durga saptshati

Durga Puja 2020 celebration in india with Durga saptshati

शारदीय नवरात्र 2020 इस वर्ष 17 अक्टूबर से शुरु हो रहे हैं। ऐसे में आज हम आपको कुछ विशिष्ट उपाय बता रहे हैं जो दुर्गा सप्तशती की मदद से किए जा सकते हैं। पंडितों व जानकारों के अनुसार दुर्गा सप्तशती आज के कलयुग में एक बहुत ही प्रभावी और तीव्र प्रभाव देने वाला पाठ है, ऐसे में यदि इसका समुचित तरीके से प्रयोग किया जाए तो एक व्यक्ति हर प्रकार की समस्याओं से मुक्ति पा सकता है।

सनातन धर्म में शक्ति की पूजा के साल में चार पर्व आते हैं, इनमें से दो क्रमश: चैत्र नवरात्र व शारदीय नवरात्र होते हैं, जबकि अन्य दो गुप्त नवरात्र कहलाते हैं, इनका सभी का शक्ति की पूजा में विशेष महत्व होता है। नवरात्र के नौ दिनों में देवी मां की पूजा से कई तरह के विशिष्ट कार्य पूरे होने की बात भी कही जाती है। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार सनातन धर्म में देवी शक्ति का प्रतीक मानी गई हैं। अत: किसी भी कार्य को करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती ही है, ऐसे में देवी मां का आह्वान किया जाता है।

पंडित शर्मा के अनुसार नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। इसमें लिखे मंत्र न केवल आपकी विभिन्न रोगों से रक्षा करते हैं, बल्कि दुर्गा सप्तशती का यह पाठ आपके लिए विशेष फलदायी भी सिद्ध होता है। इसके अलावा भी सालभर भक्तजन सप्तशती का पाठ कर देवी मां को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। वहीं जानकारों के अनुसार हर देवी की साधना और सप्ताह के हर दिन सप्तशती पाठ का अपना अलग महत्व है और वार के अनुसार इसका पाठ विभिन्न फल देने वाला कहा गया है।

शक्ति की साधना : ये मिलता है फल…

1. शैलपुत्री साधना- भौतिक एवं आध्यात्मिक इच्छा पूर्ति।
2. ब्रहा्रचारिणी साधना- विजय एवं आरोग्य की प्राप्ति।
3. चंद्रघण्टा साधना- पाप-ताप व बाधाओं से मुक्ति के लिए।
4. कूष्माण्डा साधना- आयु, यश, बल व ऐश्वर्य की प्राप्ति।
5. स्कंद साधना- कुंठा, कलह एवं द्वेष से मुक्ति।
6. कात्यायनी साधना- धर्म, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति तथा भय नाशक।
7. कालरात्रि साधना- व्यापार/रोजगार/सर्विस संबधी इच्छा पूर्ति।
8. महागौरी साधना- मनपसंद जीवन साथी व शीघ्र विवाह के लिए।
9. सिद्धिदात्री साधना- समस्त साधनाओं में सिद्ध व मनोरथ पूर्ति।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार सप्ताह के सात दिनों में हर दिन मां का ध्यान करने का अलग महत्व है। सोमवार से लेकर रविवार तक सप्तशती पाठ का कितने गुना फल प्राप्त होता है, आइए हम आपको बताते हैं कि कौन से दिन सप्तशती पाठ का कितना फल प्राप्त होता है…

: रविवार का दिन : जो मनुष्य रविवार के दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है, उसे नौ गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है।

: सोमवार का दिन : इसी प्रकार सोमवार के दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से एक हजार गुना फल प्राप्त होता है।

: मंगलवार का दिन : मंगलवार के दिन दुर्गा सप्तशती पाठ करने से सौ पाठ करने का पुण्यफल प्राप्त होता है।

: बुधवार का दिन : बुधवार के दिन मां का ध्यान कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करना, एक लाख पाठ का फल देने वाला है।

: गुरुवार और शुक्रवार का दिन : गुरुवार और शुक्रवार के दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ कर मां की आराधना करने का फल, दो लाख चंडी पाठ के फल के बराबर होता है।

: शनिवार का दिन : शनिवार का दिन देवी मां का ध्यान कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करना, एक करोड़ चंडी पाठ के फल के बराबर होता है।

दुर्गा सप्तशती से कामनापूर्ति :-
1. लक्ष्मी, ऐश्वर्य, धन संबंधी प्रयोगों के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें।

2. वशीकरण, उच्चाटन आदि प्रयोगों के लिए काले रंग के आसन का प्रयोग करें।

3. बल, शक्ति आदि प्रयोगों के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें।

4. सात्विक साधनाओं, प्रयोगों के लिए कुश के बने आसन का प्रयोग करें।

5. वस्त्र- लक्ष्मी संबंधी प्रयोगों में आप पीले वस्त्रों का ही प्रयोग करें।

6. यदि पीले वस्त्र न हो तो मात्र धोती पहन लें एवं ऊपर शाल लपेट लें।

7. आप चाहे तो धोती को केशर के पानी में भिगोंकर पीला भी रंग सकते हैं।

समय की है कमी तो ये करें उपाय…
माना जाता है कि पहले के समय में नवरात्र के दौरान लोग देवी मां की भक्ति में ही लीन रहते थे, और अपना सारा समय माता के चरणों में बिताना ही पसंद करते थे। लेकिन देखा गया है कि आज कल की दौड़ भाग वाली इस जिंदगी में भक्त लाख चाह कर भी नवरात्र में देवी के लिए पूरी तरह से समय नहीं निकाल पाते हैं।

ऐसे में यदि आप भी अभी तक किन्हीं कारणों-वश मातारानी की पूजा में पूरा समय व ध्यान नहीं दे पाएं हैं,तो भी एक तरीके से आप देवी मां को प्रसन्न कर सकते हैं।
जी हां, यदि आप नवरात्र के बीत चुके इन पांच दिनों में अब तक देवी मां की पूजा या अन्य भक्ति में पूरा ध्यान नहीं दे सके होें, तो पंडित शर्मा के अनुसार नवरात्र में एक दिन ऐसा होता है। जो आपको एक ही दिन में पूरे नौ दिनों का फल दे सकता है।
उनके अनुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ व रामरक्षास्त्रोत का पाठ कर हम आसानी से देवी मां को प्रसन्न कर सकते है। वहीं यदि अन्य दिनों में हम इन पाठों को नहीं कर सके हों तो केवल अष्टमी के दिन भी पूरी श्रृद्धा से इनका पाठ करने से तकरीबन सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
कौन से हवन से कौन से लाभ :-

– जायफल से कीर्ति।

– किशमिश से कार्य की सिद्धि

– आंवले से सुख

– केले से आभूषण की प्राप्ति होती है।
इन फलों से अर्ध्य देकर यथाविधि हवन करें…

दुर्गा सप्तशती पाठ विशेष रूप से नवरात्रों में किया जाता है और अचूक फल देने वाला होता है। दूर्गा सप्तशती पाठ में 13 अध्याय है। पाठ करने वाला , पाठ सुनने वाला सभी देवी कृपा के पात्र बनते है। नवरात्रि में नव दुर्गा की पूजा के लिए यह सर्वोपरि किताब है। इसमें मां दुर्गा के द्वारा लिए गये अवतारों की भी जानकारी प्राप्त होती है।

दूर्गा सप्तशती अध्याय 1 मधु कैटभ वध…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 2 देवताओ के तेज से माँ दुर्गा का अवतरण और महिषासुर सेना का वध…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 3 महिषासुर और उसके सेनापति का वध…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 4 इन्द्राणी देवताओ के द्वारा मां की स्तुति…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 5 देवताओ के द्वारा मां की स्तुति और चन्द मुंड द्वारा शुम्भ के सामने देवी की सुन्दरता का वर्तांत…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 6 धूम्रलोचन वध…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 7 चण्ड मुण्ड वध…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 8 रक्तबीज वध…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 9 -10 निशुम्भ शुम्भ वध…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 11 देवताओ द्वारा देवी की स्तुति और देवी के द्वारा देवताओं को वरदान…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 12 देवी चरित्र के पाठ की महिमा और फल…

दूर्गा सप्तशती अध्याय 13 सुरथ और वैश्यको देवी का वरदान…


दुर्गा सप्तशती पाठ विधि….

– सर्वप्रथम साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए।

– तत्पश्चात वह आसन शुद्धि की क्रिया कर आसन पर बैठ जाए।

– माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें।

– शिखा बांध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें।

– इसके बाद प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर देवी को अर्पित करें तथा मंत्रों से संकल्प लें।

– देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करें।

– फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए।

– इसके बाद उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है।

-इसके जप के पश्चात् मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए।

इसके बाद पूरे ध्यान के साथ माता दुर्गा का स्मरण करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। दुर्गा अर्थात दुर्ग शब्द से दुर्गा बना है , दुर्ग =किला ,स्तंभ , शप्तशती अर्थात सात सौ। जिस ग्रन्थ को सात सौ श्लोकों में समाहित किया गया हो उसका नाम शप्तशती है। जो कोई भी इस ग्रन्थ का अवलोकन एवं पाठ करेगा “मां जगदम्बा” की उसके ऊपर असीम कृपा होगी।

वहीं दुर्गा द्वादशन्नि माला का पाठ भी सभी प्रकार की कठिनाइयों से मुक्ति देता है।

किस विधि के हवन से क्या प्राप्त होता है?

– गेंहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

– खीर से परिवार वृद्धि।

– चम्पा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है।

– आवंले से कीर्ति।

– केले से पुत्र प्राप्ति होती है।

– कमल से राज सम्मान।

– किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है।

– खांड, घी, नारियल, शहद, जौं और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।

यह है व्रत की विधि :-
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रमाण करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दें। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
नवार्ण मंत्र को मंत्रराज कहा गया है और इसके प्रयोग भी अनुभूत होते हैं :-

नर्वाण मंत्र :-

।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।

परेशानियों के अन्त के लिए :-
।। क्लीं ह्रीं ऐं चामुण्डायै विच्चे ।।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए :-

।। ओंम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।

शीघ्र विवाह के लिए :-

।। क्लीं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे ।।
सप्त-दिवसीय श्रीदुर्गा-सप्तशती-पाठ

सप्तशती :- जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि ऐसा चरित्र या एक ऐसा संग्रह जो सात सौ (श्लोकों) का समूह है – दुर्गा शप्तशती में कुल सात सौ श्लोकों का संग्रह है -!

इस दौरान सात दिनों में तेरहों अध्यायों का पाठ किया जाता है -!

1. पहले दिन एक अध्याय

2. दूसरे दिन दो अध्याय

3. तीसरे दिन एक अध्याय

4. चौथे दिन चार अध्याय
5. पाँचवे दिन दो अध्याय

6. छठवें दिन एक अध्याय

7. सातवें दिन दो अध्याय

पाठ कर सात दिनों में श्रीदुर्गा-सप्तशती के तीनो चरितों का पाठ कर सकते हैं

श्रीदुर्गा-सप्तशती-पाठ विधि :-

सबसे पहले अपने सामने ‘गुरु’ और गणेश जी आदि को मन-ही-मन प्रणाम करते हुए दीपक को जलाकर स्थापित करना चाहिए। फिर उस दीपक की ज्योति में भगवती दुर्गा का ध्यान करना चाहिए।

ध्यान :-

ॐ विद्युद्दाम-सम-प्रभां मृग-पति-स्कन्ध-स्थितां भीषणाम्।

कन्याभिः करवाल-खेट-विलसद्-हस्ताभिरासेविताम् ।।

हस्तैश्चक्र-गदाऽसि-खेट-विशिखांश्चापं गुणं तर्जनीम्।

विभ्राणामनलात्मिकां शशि-धरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ।।

ध्यान के पश्चात् पंचोपचार / दशोपचार / षोडशोपचार से माता का पूजन करें – इसके बाद उपरोक्त वर्णित विधि के अनुसार सप्तशती का पाठ करें :-

पंचोपचार पूजन / दशोपचार पूजन / षोडशोपचार पूजन

आत्मशुद्धि,संकल्प,शापोद्धार,कवच,अर्गला,कीलक

सप्तशती पाठ ( दिवस भेद क्रम में )

इसके बाद माता से क्षमा प्रार्थना करें – क्षमा प्रार्थना का स्तोत्र भी सप्तशती में है।

इसके द्वारा ज्ञान की सातों भूमिकाओं :-

शुभेच्छा, विचारणा, तनु-मानसा, सत्त्वापति, असंसक्ति, पदार्थाभाविनी, तुर्यगा की सहज रुप से परिष्कृत और संवर्धित होती है।

इसके अलावा किस प्रकार कि समस्या निवारण के लिए कितने पाठ करें इसका विवरण इस प्रकार है…

: ग्रह-शांति के लिए 5 बार
: महा-भय-निवारण के लिए 7 बार
: सम्पत्ति-प्राप्ति के लिए 11 बार
: पुत्र-पौत्र-प्राप्ति के लिए 16 बार
: राज-भय-निवारण के लिए – 17 या 18 बार
: शत्रु-स्तम्भन के लिए – 17 या 18 बार
: भीषण संकट – 100 बार
: असाध्य रोग – 100 बार
: वंश-नाश – 100 बार
: मृत्यु – 100 बार
: धन-नाशादि उपद्रव शान्ति के लिए 100 बार

दुर्गा सप्तशती के अध्याय और कामना पूर्ति :-

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार दुर्गासप्तशती के हर अध्याय से किस खास कामना कि पूर्ति होती है, जो इस प्रकार है…

प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।

द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।

तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिए।

चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।

पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।

षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिए।

सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिए।

अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिए।

नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिए।

दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिए।

एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिए।

द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिए।

त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिए।

वैदिक आहुति विधान एवं सामग्री :-

प्रथम अध्याय :- एक पान पर देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना ।

द्वितीय अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार इसमें गुग्गुल और शामिल कर लें।

तृतीय अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 38 के लिए शहद प्रयोग करें।

चतुर्थ अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 1 से 11 मिश्री व खीर विशेष रूप से सम्मिलित करें।

चतुर्थ अध्याय के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए ऐसा करने से देह नाश होता है – इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर “ॐ नमः चण्डिकायै स्वाहा” बोलकर आहुति दें तथा मंत्रों का केवल पाठ करें इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।

पंचम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 9 में कपूर – पुष्प – ऋतुफल की आहुति दें।

षष्टम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 23 के लिए भोजपत्र कि आहुति दें।

सप्तम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में जौ का प्रयोग करें।

अष्टम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।

नवम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना प्रयोग करें।

दशम अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग/फेन 31 में कत्था प्रयोग करें।

एकादश अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मे अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मे फूल और चावल।

द्वादश अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 10 मे नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल।

त्रयोदश अध्याय :- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल…

इष्ट आरती विधान :-

कई बार हम सब लोग जानकारी के अभाव में मन मर्जी के अनुसार आरती उतारते रहते हैं, जबकि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारने का विधान होता है –

चार बार चरणों में दो बार नाभि पर एक बार मुख पर सात बार पूरे शरीर पर इस प्रकार चौदह बार आरती की जाती है – जहां तक हो सके विषम संख्या अर्थात 1,2,5,7 बत्तियां बनाकर ही आरती की जानी चाहिए।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय रखें इन 9 बातों का खास ध्यान…

दुर्गा सप्‍तशती का पाठ वैसे तो कई घरों में रोजाना किया जाता है। मगर नवरात्र में दुर्गा सप्‍तशती का पाठ करना विशेष और जल्दी फलदायक माना गया है। नवरात्र में दुर्गा सप्‍तशती का पाठ करने से अन्‍न, धन, यश, कीर्ति की प्राप्ति होती है। लेकिन पाठ की सफलता और पूर्ण लाभ के लिए पाठ करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए…

1. स्पष्‍ट होना चाहिए उच्‍चारण…
दुर्गा सप्तशती के पाठ में सस्वर और एक लय से पाठ करने का महत्व है। सप्तशती में बताया गया है कि पाठ इस तरह से करना चाहिए कि एक-एक शब्द का उच्चारण साफ हो और आप उसे सुन सकें। बहुत जोर से या धीमे से पाठ ना करें।

2. शुद्धता है बहुत जरूरी…
पाठ करते समय हाथों से पैर का स्पर्श नहीं करना चाहिए, अगर पैर को स्पर्श करते हैं तो हाथों को जल से धो लें।

3. ऐसे आसन का करें प्रयोग…
पाठ करने के लिए कुश का आसन प्रयोग करना चाहिए। अगर यह उपलब्ध नहीं हो तब ऊनी चादर या ऊनी कंबल का प्रयोग कर सकते हैं।

4. ऐसे वस्‍त्र करें धारण…
पाठ करते समय बिना सिले हुए वस्त्रों को धारण करना चाहिए, पुरुष इसके लिए धोती और महिलाएं साड़ी पहन सकती हैं।

5. मन एकाग्रचित होना जरूरी…
दुर्गा पाठ करते समय जम्हाई नहीं लेनी चाहिए। पाठ करते समय आलस भी नहीं करना चाहिए। मन को पूरी तरह देवी में केन्द्रित करने का प्रयास करना चाहिए।

6. इस प्रकार करना चाहिए पाठ…
दुर्गा सप्तशती में तीन चरित्र यानी तीन खंड हैं प्रथम चरित्र, मध्य चरित्र, उत्तम चरित्र। प्रथम चरित्र में पहला अध्याय आता है। मध्यम चरित्र में दूसरे से चौथा अध्याय और उत्तम चरित्र में 5 से लेकर 13 अध्याय आता है। पाठ करने वाले को पाठ करते समय कम से कम किसी एक चरित्र का पूरा पाठ करना चाहिए। एक बार में तीनों चरित्र का पाठ उत्तम माना गया है।

7. ऐसा करने से मिलता है पूर्ण फल…
सप्तशती के तीनों चरित्र का पाठ करने से पहले कवच, कीलक और अर्गलास्तोत्र, नवार्ण मंत्र, और देवी सूक्त का पाठ करना करना चाहिए। इससे पाठ का पूर्ण फल मिलता है।

8. कुंजिकास्तोत्र का पाठ…
अगर संपूर्ण पाठ करने के लिए किसी दिन समय नहीं तो कुंजिकास्तोत्र का पाठ करके देवी से प्रार्थना करें कि वह आपकी पूजा स्वीकार करें।

9. देवी मां से क्षमा प्रार्थना…
सप्तशती पाठ समाप्त करने के बाद अंत में क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए और देवी से पाठ के दौरान कोई कोई भूल हुई हो तो उसके लिए क्षमा मांगनी चाहिए।

Hindi News / Astrology and Spirituality / Dharma Karma / Durga Puja 2020 : इस नवरात्रि दुर्गा सप्‍तशती की मदद से मां दुर्गा को करें प्रसन्न, पाएं मनचाहे वरदान

ट्रेंडिंग वीडियो