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Diwali: दिवाली की तीन पौराणिक कथाएं, जानिए दीपावली उत्सव का पूरा इतिहास

दीपावली हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। इस दिन दुनिया भर के हिंदू अपने घरों को सजाते हैं, पूजा करते हैं और खुशियां मनाते हैं। इस दिन को लेकर कई कहानियां हैं तो आइये पौराणिक कहानियों से जानते हैं दिवाली का महत्व..

Nov 11, 2023 / 03:21 pm

Pravin Pandey

दीपावली की कथाएं

14 वर्ष बाद अयोध्या लौटे थे श्रीराम
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रावण से युद्ध में जीत के बाद कार्तिक अमावस्या के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके अयोध्या आने की खुशी में प्रजा ने श्रीराम , मां सीता और लक्ष्मण के स्वागत के लिए पूरे राज्य को दीपों से सजाया था और उस दिन से ही दिवाली का पर्व मनाया जा रहा है।
भगवान श्रीकृष्ण ने किया था नरकासुर का वध
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भूदेवी और वराह (भगवान विष्णु के अवतारों में से एक) का एक पुत्र था नरकासुर। उसके लिए नरकासुर की माता ने बेटे को शक्तिशाली बनाने और लंबी आयु प्रदान करने का भगवान विष्णु से वरदान मांगा था। साथ ही उसे वरदान मिला था कि जिस दिन उसकी मृत्यु होगी, उस दिन को त्योहार के रूप में मनाया जाएगा। इससे बड़ा होकर वह लोगों को सताने लगा। सभी देवी-देवता नरकासुर से परेशान हो गए। एक दिन वे विष्णुजी के पास सहायता के लिए गए, तब श्रीहरि ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह इसका उपाय करेंगे। इसके बाद विष्णुजी ने जब द्वापर युग में कृष्ण अवतार लिया तब असुरराज नरकासुर का वध कर 16000 महिलाओं को उसकी कैद से मुक्त कराया। इसी वरदान के चलते नरकासुर की मृत्यु के दिन छोटी दिवाली मनाई जाने लगी।
समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी का अवतरण
दिवाली के दिन धन-धान्य की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसके पीछे की कहानी सागर मंथन से जुड़ती है। इसके अनुसार देवता और असुर क्षीर सागर में मंथन कर रहे थे उस समय कार्तिक अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी कमल के फूल पर विराजमान होकर प्रकट हुईं थी। भगवान विष्णु को लक्ष्मीजी ने अपने वर के रूप में चुना और संसार को धन, समृद्धि, और ऐश्वर्य का आशीर्वाद दिया। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है।
बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं दिवाली
सिख समुदाय द्वारा दिवाली को बंदी छोड़ दिवस के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी की रिहाई हुई थी और सन 1619 में दिवाली के समय वह अपने अनुयायियों के पास वापस लौट आए थे।
दिवाली पर निर्वाण की हुई थी प्राप्ति
दिवाली के दिन ही जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। ऐसा माना जाता है कि महावीर ने ही जैन धर्म को वह स्वरूप प्रदान किया जो आज हमारे सामने हैं।

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