पूजा विधि
देव उठनी ग्यारस के दिन इस मंत्र का उच्चारण करते हुए देवों को जगायें ।
‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये ।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम् ॥
‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव ।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः ॥
‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव ।
1- सूर्यास्त के बाद परिवार सहित धुले हुये वस्त्र पहनकर तुलसी विवाह के लिए तैयार हो जाये ।
2- सजाये गये तुलसी के पौधा वाला एक पटिये पर घर के आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें ।
3- अब तुलसी वाले के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं ।
4- मंडप बनाने के बाद तुलसी माता पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं ।
5- अब तुलसी के बगल में शालिग्राम जी भी स्थापित करें ।
6- शालिग्राम जी पर तिल ही चढावें, क्योंकि उन पर चावल नहीं चढ़ाये जाते ।
7- तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में मिलाकर गीली हल्दी लगाएं ।
8- गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें ।
9- तुलसी जी और शालिग्राम जी का पूजन करने के बाद मंगलाष्टक का पाठ अवश्य करें ।
10- कुछ लोग देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ करते है, अत: पूजन के लिए बेर, भाजी, आंवला, मूली एवं गाजर जैसी खाने की चीजे एकत्रित कर लें ।
11- पूजन पूर्ण होने के पश्चात कपूर से (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी ) आरती जरूर करें ।
12- आरती के बाद तुलसी नामाष्टक मंत्र को पढ़ते हुए दंडवत प्रणाम करें ।
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी ।
पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी ।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम ।
य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता ।।
13- आरती के बाद तुलसी जी एवं शालिग्राम जी को प्रसाद का भोग लगायें ।
14- भोग लगाने के बाद 11 परिक्रमा तुलसी जी की करें ।
15- पूजा समापन के बाद जब भोजन करे तो भोजन से पहले पूजा के भोग का प्रसाद ग्रहण करें ।
इस शुभ मुहूर्त में करें पूजन
19 नवंबर को तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त गोधूली बेला हैं ।
शाम को- 5 बजकर 50 मिनट से लेकर रात बजकर 15 मिनट तक शुभ मुहूर्त हैं ।