Daanvir Karan: जब कर्ण ने पकड़ा भानुमती का हाथ
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक एक दिन दान कर्ण और भानुमती अपने महल में अकेले चौपड़ खेल रहे थे। इस खेल के अंतिम पड़ाव पर रानी भानुमति की हार होने लगी। इससे वह परेशान होने लगीं और कर्ण उन्हें चिढ़ाने लगा। जब भानुमाति हार होते देख खेल छोड़ कर जाने लगीं तो कर्ण ने अनजाने में उनका हाथ पकड़ लिया। इसी बीच रानी भानुमति के कानों में दुर्योधन के आने की आहट सुनाई दी। जैसे ही उन्होंने दरवाजे के तरफ देखा तो दुर्योधन उसके सामने आ खड़ा हुआ।Daanvir Karan: मित्रता पर भरोसा
दुर्योधन ने जब रानी भानुमति के तरफ देखा तो वह सहम गईं। इससे भानुमति के मन में डर पैदा हो गया। लेकिन कर्ण दुर्योधन का घनिष्ट मित्र था। इसलिए कर्ण पर कोई संदेह नहीं जताया। इसका कारण था दुर्योधन और कर्ण के बीच गहरी मित्रता और अटूट विश्वास। दुर्योधन जानता था कि कर्ण का उद्देश्य नेक था और उसमें कोई गलत भावना नहीं थी। इस घटना ने कर्ण और दुर्योधन की मित्रता को और मजबूत किया। कर्ण और भानुमती की यह कहानी महाभारत की एक विवादित घटना है। लेकिन इससे कर्ण का निस्वर्थभाव और सत्यनिष्ठा का स्वभाव उजागर होता है। साथ ही यह दुर्योधन और कर्ण की गहरी मित्रता को दर्शाती है।
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