“गहना कर्मणोंगति”- प्रत्येक प्राणी के अंत:करण में भगवान चित्रगुप्त विराजित रहते हैं। जैसा कि चित्रगुप्त शब्द से अर्थ निकलता है, कि गुप्त रूप से बने चित्र। भारतीय विद्वान कर्म रेखा के बारे में प्राचीन काल से बताते आए हैं कि “कर्म रेख नहीं मिटे, करो कोई लखन चतुराई” आधुनिक शोधों ने इन कर्म रेखाओं के अलंकारिक कथानक की पुष्टि की है। वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के ग्रै मैटर के एक परमाणु में अगणित रेखाए पा़ई हैं, यह रेखाए किस प्रकार बनती हैं इसका कोई प्रत्यक्ष शारीरिक कारण वैज्ञानिकों को नहीं मिला। यह रेखाए एक प्रकार के गुप्त चित्र ही हैं। ग्रामोफ़ोन की रेखाओं में कितना संगीत रिकार्ड हो जाता है, आज कल प्रचलित माइक्रोसॉफ्ट में कितना डाटा संग्रह किया जा सकता है यह हम सब जानते हैं।
इस प्रकार सबके लिए अलग अलग चित्रगुप्त मन में रहते हैं, जो बिना किसी भेदभाव के प्राणी के कर्मों को उनके करने के भाव के साथ रिकॉर्ड करते चलते हैं। अत: किसी भी काम को करने के पहले अंतर्मात्मा की बात को जरूर सुना जाय। मन में चलने वाले देवासुर संग्राम में देव शक्तियों की विजय के लिए अपने अदंर के चित्रगुप्त का स्मरण जरूर किया जाय। इस स्थिति में आप सदा अच्छे काम ही करेंगे, साथ ही जल्दी तथा गलत कामो को न करने या अभी टालने का निर्णय तो लिया ही जा सकता है। हमारी राय में यही चित्रगुप्त पूजन का सही मर्म है, इसे समझा और अपनाया जाना चाहिए।
प्रारब्ध कर्मों का फल मिलना निश्चित है, परंतु उसके अनुकूल परिस्थिति प्राप्त होने में कुछ समय लग जाता है। यह समय कितने दिन का होता है, इस सम्बन्ध में कुछ नियम मर्यादा नहीं है, वह आज का आज भी हो सकता है और कुछ जन्मों के अंतर से भी हो सकता है, किंतु प्रारब्ध फल होते वही है, जो अचानक घटित हों और जिसमें मनुष्य का कुछ वश न चले।
******************