छठ मुख्य रूप से चार दिवसीय पर्व है, ऐसे में इस महापर्व के तीसरे दिन की शाम को नदी-तालाब के किनारे डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जबकि उसके अगले दिन सुबह उगते सूर्य देवता को जल दिए जाने का नियम है। जिसके बाद छठ पूजा का समापन हो जाता है।
पंडित एसके पांडे के अनुसार छठ पूजा के संबंध में मान्यता है कि इसकी शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखण्ड से हुई जो अब देश-विदेश तक फैल चुकी है। दरअसल अंग देश के महाराज कर्ण सूर्यदेव के उपासक थे, ऐसे में सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव परंपरा के रूप में इस इलाके पर दिखता है।
साल 2021 में छठ की प्रमुख तारीखें
छठ महापर्व के तहत इस बार सोमवार,8 नवंबर को नहाए-खाए से छठ पूजा की शुरुआत होगी, जिसके बाद मंगलवार,9 नवंबर को खरना होगा। जबकि पहला अर्घ्य बुधवार, 10 नवंबर को संध्याकाल में दिया जाएगा और फिर अंतिम अर्घ्य गुरुवार, 11 नवंबर को अरुणोदय में दिया जाएगा।
36 घंटे लगातार निर्जला का व्रत है छठ
छठ महापर्व के तहत खरना के दिन से ही छठव्रत का उपवास शुरू हो जाता है। ऐसे में व्रती दिनभर निर्जला उपवास के पश्चात शाम को मिट्टी के बने नए चूल्हे पर आम की लकड़ी की आंच से गाय के दूध में गुड़ डालकर खीर और रोटी बनाते हैं।
इसके पश्चात भगवान सूर्य को केले और फल के साथ इसका भोग लगाकर फिर प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करते हैं। पहले इस प्रसाद को व्रतधारी ग्रहण करता हैं, वहीं इस व्रत की एक महत्वपूर्ण बात ये है कि खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती लगातार 36 घंटे तक निर्जला उपवास रहने के पश्चात चौथे दिन उगते हुए सूर्य को जल अर्पण करके ही जल-अन्न ग्रहण करेगा।
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ज्योतिष के जानकारों के अनुसार सूर्य देव कार्तिक मास में अपनी नीच राशि में होता है, ऐसे में सूर्य देव की विशेष उपासना इसलिए की जाती है ताकि स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान ना करें। वहीं षष्ठी तिथि का संबंध संतान की आयु से होने के कारण सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है।
घाटों पर दिया जाएगा अर्घ्य
देश भर में छठ के मौके पर जगह-जगह गूंज रहे गीतों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है। ऐसे में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में इस बार कोरोना को देखते हुए छठ पूजा के दौरान अधिक भीड़ भाड़ नहीं हो इसके लिए शहर में अस्थाई घाट बनाए गए हैं।
इस बार श्रद्धालुओं को छठ पूजा करने के लिए करीब 50 घाट मिलेंगे, ताकि वे अपने समीप स्थित घाट पर पहुंचकर आसानी से पूजा कर सकें और भीड़ भाड़ भी नहीं रहे। इसके अलावा पूरे बिहार-झारखंड में नदी, नहर और तालाब के किनारे अघ्र्य देने के लिए घाट बनाए गए हैं।
छठ मैया की महिमा
दरअसल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक भगवान सूर्यदेव की अटल आस्था का महापर्व छठ पूजा के रूप में मनाया जाता है।
लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत नहाय खाय के साथ ही हो जाती है। आस्था का यह महापर्व चार दिन तक चलता है ऐसे में इसे मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है।
इसके महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि इस पर्व के दौरान किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती। ऐसे में शुद्धता और सफाई के साथ तन और मन से भी इस महापर्व में जबरदस्त शुद्धता का ख्याल रखना होता है।
छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न विशाल पंडालों और भव्य मंदिरों की जरूरत होती है
छठ महापर्व: जानें पौराणिक एवं प्रचलित लोक कथाएं
छठ महापर्व को लेकर जो पौराणिक मान्यता हैं, उनके अनुसार इस संपूर्ण छठ उत्सव के केंद्र में एक कठिन तपस्या की तरह छठ व्रत होता है। यह मुख्यरूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्रत पुरुष भी रखते हैं। यह पर्व पवित्र हृदय से सूर्य की आराधना का है, जिसमें सूर्य देव के प्रति पूर्ण विश्वास, भक्ति, श्रद्धा,आस्था व समर्पण का भाव होता है।
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– मान्यता के अनुसार राम राज्याभिषेक के बाद रामराज्य की स्थापना का संकल्प लेकर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की थी और सप्तमी को सूर्योदय के समय अपने अनुष्ठान को पूर्ण कर प्रभु से रामराज्य की स्थापना का आशीर्वाद प्राप्त किया था। तभी से छठ का पर्व लोकप्रिय हो गया।
– वहीं एक दूसरी मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। जिसके तहत सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त होने के साथ ही वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़ेे होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। ऐसे में आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्घति प्रचलित है।
– वहीं कुछ अन्य कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
– एक अन्य कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ, परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे।
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उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
छठ के नियम
1. व्रत रखने वाली महिला को चार दिनों तक लगातार उपवास करना होता है।
2. इस दौरान भोजन के साथ ही सुखद शैया को भी त्यागना होता है।
3. छठ पर्व के तहत बनाए गए कमरे में व्रती को फर्श पर एक कंबल या एक चादर के सहारे ही रात बितानी होती है।
4. इस उत्सव में लोग नए कपड़े पहनकर शामिल होते हैं, परंतु व्रती को बिना सिलाई किए कपड़े पहनते होते हैं।
5. महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं।
6. एक बार इस व्रत को शुरू करने के पश्चात छठ पर्व को सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाए।
7. यह पर्व घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर नहीं मनाया जाता है।