इस रविवार को एक साथ 5 शुभ महासंयोग बन रहे जिसमें भानु सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, रथ सप्तमी, सूर्य सप्तमी, पुत्र सप्तमी आदि एक ही दिन या ये कहे की इन्हें इतने नामों से भी जाना जाता हैं । इसी दिन सूर्य भगवान अपनी प्रकाश से पृथ्वी को प्रकाशवान किया था । रविवार के दिन सप्तमी तिथि के संयोग से ‘भानु सप्तमी’ पर्व का सृजन होता हैं । ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपने वाले सूर्य ‘भग’ रक्तवर्ण हैं । यह सूर्यनारायण के सातवें विग्रह हैं और एश्वर्य रूप से पूरी सृष्टि में निवास करते हैं । सम्पूर्ण ऐश्वर्या, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य ये छह भग कहे जाते हैं । इन सबसे सम्पन्न को ही भगवान माना जाता हैं, अस्तु श्रीहरी भगवान विष्णु के नाम से जाने जाते हैं ।
भगवान सूर्य नारायण के इन मंत्रों मे से किसी एक मंत्र या सभी मंत्रों को कम से कम 108 बार भानु सप्तमी के दिन जप करना चाहिए ।
ॐ मित्राय नमः, ॐ रवये नमः ।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगाय नमः, ॐ पुष्णे नमः ।
ॐ हिरन्यायगर्भय नमः, ॐ मरीचे नमः ।
ॐ सवित्रे नमः, ॐ आर्काया नमः ।
ॐ आदिनाथाय नमः, ॐ भास्कराय नमः ।
ॐ श्री सवितसूर्यनारायण नमः।
शास्त्रोंक्त मान्यता हैं कि पौष मास के प्रत्येक रविवार के दिन ‘विष्णवे नमः’ मंत्र से सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए । इस ताम्र के पात्र में शुद्ध जल भरकर उसमें लाल चन्दन, अक्षत, लाल रंग के फूल डाल कर सूर्यनरायण को अर्ध्य देना चाहिए । रविवार के दिन एक समय बिना नमक का भोजन सूर्यास्त के बाद करना चाहिए । सूर्य देव को पौष में तिल और चावल की खिचड़ी का भोग लगाने के साथ बिजौरा नींबू समर्पित करना चाहिए । पौराणिक ग्रन्थों और शास्त्रों में भानु सप्तमी के दिन जप, यज्ञ, दान आदि करने पर सूर्य ग्रहण की तरह अनंत गुना फल प्राप्त होता हैं । सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं, इनकी अर्चना से मनुष्य को सब रोगों से छुटकारा मिलता हैं । जो नित्य भक्ति और भाव से सूर्यनारायण को अर्ध्य देकर नमस्कार करता है, वह कभी भी अंधा, दरिद्र, दुःखी और शोकग्रस्त नहीं रहता ।