माना जाता है कि पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अद्भुत शक्ति प्रकट हुईं, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में पुष्प था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। माना जाता है कि मां सरस्वती ने जब वीणा बजाया तो संसार की हर चीज में स्वर आ गया। इसी से उनका नाम देवी सरस्वती पड़ा। तब ही से देव लोक और मृत्युलोक में मां सरस्वती की पूजा होने लगी।
कैसे मिली जीव जंतुओं को आवाज ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया, संसार के समस्त जीव-जंतुओं को आवाज प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया और पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती जी को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से हम जानते हैं।
बसंत पंचमी और पीला रंग बसंत ऋतु में पीले रंग का विशेष महत्व है। बसंत ऋतु को पीले रंग का प्रतीक माना जाता है। इस दिन पूजा विधि में भी पीले रंग के वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही पीले रंग के कपड़े पहनने को भी वरीयता दी जाती है। यही नहीं, बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के व्यंजन भी बनाए जाते हैं। जिनमें मीठे चावल, केसरिया शीरा, बूंदी के लड्डू और राजभोग विशेष रूप से पसंद किए जाते हैं।
देवी सरस्वती ऐसा माना जाता है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी को ज्ञान की देवी सरस्वती प्रकट हुईं थीं। इसलिए बसंत पंचमी को देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है जिससे प्रसन्न होकर साधकों को ज्ञानवान होने का आशीर्वाद दें। देवी सरस्वती को ज्ञान, कला और संगीत की देवी मानी जाती है। इनके आशीर्वाद से अज्ञानता रूपी अंधकार का नाश हो जाता है।