बेंगलूरु. जेपी नगर के पुट्टनहल्ली स्थित शीतलनाथ जिनालय में युगल मुनि के सान्निध्य में जनसहस्रनाम महामण्डल विधान में गुरुवार को भगवान के समक्ष 1008 अक्षत के पुंज चढ़ा कर पूजा-अर्चना की गई। आज के सौधर्म इंद्र विनोदकुमार, शीला जैन और अक्षत-छाया जैन परिवार ने श्रीजी का पंचामृत अभिषेक किया, फिर नंदीश्वर द्वीप की पूजा भक्ति नृत्य के साथ की। इस अवसर पर मुनि अमोघकीर्तिने कहा साक्षात समवशरण में विराजमान भगवान स्वयं मंगल हैं, अरिहंतों की आत्मा मंगल होती है, इसलिए इनका नाम मंगल है। छह प्रकार का मंगल होता है-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। अरिहंत भगवान, सिद्ध भगवान, साधू और केवली भगवान के द्वारा बताया गया धर्म मंगल है। इसमें उपलक्षण न्याय को स्वीकार करना है। ऐसे जितने भी सजातीय तीनों लोकों में मंगल हैं। मन्दिर, निर्वाण भूमि, तीर्थ क्षेत्र, आदि सभी मंगल हैं। दो हजार वर्ष पूर्व आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबली ने णमोकार महामंत्र को षट्खंडागम ग्रंथ में मंगलाचरण के रूप में लिपिबद्ध किया और कई वर्षों बाद आचार्य वीरसेन स्वामी ने धवलामहाग्रंथराज में इस पर 7000 श्लोक प्रमाण टीका लिखी। मुनि अमरकीर्ति ने कहा जिन सहस्रनाम का एक बार पाठ करने से हमारे पिछले जन्मों के संचित पाप भी एक हजार प्रकार से नष्ट होते हैं। इसके पाठ करने से स्मरणशक्ति में अचिन्त्य वृद्धि होती है और ज्ञान का अतिशय प्रकट होता है।