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सावन सोमवार के दिन इस प्राचीन कथा का पाठ हर समस्या से मुक्ति दिलाता है

सावन 2023 का पहला सोमवार 10 जुलाई को…इस सावन पड़ेंगे केवल 4 सोमवार…

Jul 06, 2023 / 06:37 pm

दीपेश तिवारी

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सावन भगवान शिव का प्रिय माह माना गया है। इस दौरान जहां भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं, ऐसे में सृष्टि की रक्षा का पूरा भार भगवान शिव पर रहता है। जिसके चलते भक्त इस समयावधि में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूरे माह उनकी पूजा आराधना करते हैं। आदिपंच देवों सहित त्रिदेवों में से एक भगवान शिव अत्यंत भोले हैं, जिसके चलते वे भक्तों पर तुरंत प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

पंडितों और धर्म के जानकारों के अनुसार यदि आपके मन में भी कोई इच्छा है,जो तमाम प्रयासों के बावजूद पूरी नहीं हो पा रही है, तो ऐसे में इस बार सावन सोमवार का व्रत करके यहां बताई गई व्रत कथा का पाठ अवश्य करें।

इस प्राचीन कथा के संबंध में मान्यता है कि सावन सोमवार के दिन यदि व्रत रखकर इस कथा का पाठ किया जाता है तो व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है।

ये है प्राचीन सावन सोमवार की कथा…
कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक साहूकार भगवान शिव का अनन्य भक्त था। इस साहूकार के पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन हर रोज शिवजी के मंदिर जाकर वह संतान की कामना को लेकर वहां दीपक जलाता था। कारण सब कुछ होने के बावजूद उसकी कोई संतान नहीं थी।
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एक दिन माता पार्वती ने साहूकार के इस भक्तिभाव को देखते हुए भगवान शिव से कहा कि प्रभु इस साहूकार को यदि किसी बात का कष्ट है तो उसे आपको अवश्य दूर करने का कष्ट करें, क्योंकि यह आपका अनन्य भक्त है। इस पर भगवान शिव ने कहा कि, हे! पार्वती यह दुखी इसलिए है क्योंकि इस साहूकार की कोई संतान नहीं है।

इस पर जवाब में माता पार्वती ने कहा कि, हे ईश्वर! कृपा कर इसे पुत्र का वरदान दे दीजिए। तो भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती साहूकार के भाग्य में पुत्र का योग है ही नहीं। ऐसे में अगर इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे भी दिया जाए तो भी वह बालक केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रह सकेगा।
माता पार्वती ने भगवान शिव की ये बात सुनकर कहा कि हे प्रभु इस साहूकार को पुत्र का वरदान आपको देना ही होगा, वरना भक्त आपकी सेवा और पूजा क्यों करेंगे? माता के द्वारा बार-बार कहने से भोलेनाथ ने साहूकार को पुत्र का वरदान तो दे दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वह केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा।
यह सारी बातें सुनकर साहूकार न तो खुश हुआ और न ही दुखी। वह पहले की ही तरह भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता रहा। जिसके कुछ समय बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसने नवें महीने एक सुंदर से बालक को जन्म दिया। पुत्र के जन्म को परिवार में खूब हर्षोल्लास मनाया गया, लेकिन साहूकार पहले ही की तरह रहा और उसने बालक की आयु (12 वर्ष की) का जिक्र किसी से भी नहीं किया।
11 वर्ष की आयु के हो गए बालक के लिए एक दिन साहूकार की सेठानी ने बालक के विवाह के लिए कहा। तो साहूकार बोला कि वह अभी बालक को पढऩे के लिए काशी भेजेगा। इसके लिए उसने बालक के मामा जी को बुलाया और कहा कि इसे काशी पढऩे के लिए ले जाओ साथ ही ये भी कहा कि रास्ते में जिस किसी भी स्थान पर रुको वहां यज्ञ करने के साथ ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराते हुए आगे बढऩा।
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ऐसे में बालक व उसके मामा काशी जाते समय जिस भी स्थान पर रुकते वहां यज्ञ व ब्राह्मणों को भोजन करते हुए आगे बढतेे थे, इसी दौरान रास्ते में एक राजकुमारी का विवाह था। इस राजकुमारी का जिससे विवाह होना था, वह एक आंख से काना था।

तो राजकुमारी के पिता ने जब अति सुंदर साहूकार के बेटे को देखा तो उसने मन में सोचा कि क्यों न घोड़ी पर बिठाकर सारे कार्य (शादी के ) इसे ही संपन्न करा लिए जाएं। बालक के मामा से उसने बात की और अथाह धन देने की भी बात कही, इस पर बालक के मामा भी राजी हो गए।

फिर साहूकार का बेटा विवाह वेदी पर बैठा और विवाह संपन्न होने के पश्चात जाने से पहले उसने राजकुमारी की चुंदरी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ, लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजेंगे वह तो एक आंख का काना है। फिर वह अपने मामा के साथ काशी के लिए चला गया।
वहीं अपनी चुनरी पर जब राजकुमारी ने यह लिखा हुआ देखा तो उसने राजकुमार के साथ जाने से इनकार कर दिया। इस पर राजा ने भी बारात के साथ अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिसके बाद बारात वापस लौट गई। इधर साहूकार का पुत्र और उसका मामा भी काशी पहुंच गए।
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एक दिन मामा ने यज्ञ रहा था, लेकिन भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया। इस पर जब मामा ने अंदर जाकर देखा तो पाया कि भांजे के प्राण निकल चुके हैें। वह बहुत परेशान हुआ, लेकिन यह सोचकर चुप रहा कि अभी रोना-पीटना मचाया तो ब्राह्मण चले जाएंगे जिससे यज्ञ अधूरा रह जाएगा। ऐसे मे जब यज्ञ संपन्न हो गया तब कहीं जाकर मामा ने रोना-पीटना शुरू किया।

इसी समय भगवान शिव व माता पार्वती वहां से जा रहे थे कि तभी माता पार्वती ने शिवजी से पूछा हे प्रभु, ये कौन रो रहा है? इस पर उन्हें पता चला कि भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मे साहूकार के पुत्र की मृत्यु हो गई है। इस पर माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे स्वामी इसे जीवित कर दें अन्यथा रोते-रोते इसके माता-पिता के भी प्राण निकल जाएंगे। इस पर भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती! इसकी आयु इतनी ही थी, सो वह भोग चुका। लेकिन माता के बार-बार आग्रह करने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया।

और लड़का ओम नम: शिवाय करते हुए जी उठा और मामा-भांजे दोनों ने ईश्‍वर को धन्‍यवाद दिया और अपनी नगरी की ओर लौटे। रास्‍ते में फिर वही नगर पड़ा जहां लड़के को घोड़ी पर बिठाकर राजकुमारी के साथ शादी के सारे कार्य संपन्‍न किए गए थे, यहां राजकुमारी ने उन्‍हें पहचान लिया तब राजा ने राजकुमारी को साहूकार के बेटे के साथ बहुत सारे धन-धान्‍य के साथ विदा किया।

उधर साहूकार और उसकी पत्‍नी छत पर बैठे थे। उन्‍होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि उनका पुत्र सकुशल न लौटा तो वह छत से कूदकर अपने प्राण त्‍याग देंगे। तभी लड़के के मामा ने आकर साहूकार के बेटे और बहू के आने का समाचार सुनाया, लेकिन वे नहीं मानें तो मामा ने शपथ पूर्वक कहा त‍ब कहीं जाकर दोनों को विश्‍वास हुआ और दोनों ने अपने बेटे-बहू का स्‍वागत किया।

उसी रात साहूकार को स्‍वप्‍न ने शिवजी ने दर्शन दिया और कहा कि तुम्‍हारे पूजन से मैं प्रसन्‍न हुआ। इसी प्रकार जो भी व्‍यक्ति इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसके समस्‍त दुरूख दूर हो जाएंगे और मनोवांछ‍ित सभी कामनाओं की पूर्ति होगी।

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