अशुभ योगों में सर्वोपरि है विषकन्या योग…
ज्योतिष के जानकार सुनील शर्मा की मानें तो जहां एक ओर शुभ योगों में राजयोग और गजकेसरी योग सबसे सर्वोपरि माने जाते हैं, तो वहीं अशुभ योगों में विषकन्या योग सबसे प्रमुख माना जाता है।
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नाम के ही अनुरूप होने वाले ये शुभ योग जहां जातक को राजसी सुख और गुणों से युक्त,जीवन दीर्घजीवी, कुशाग्रबुद्धि,शत्रुहन्ता, वाकपटु, तेजस्वी एवं यशस्वी बनते हैं। वहीं कुंडली में मौजूद ‘विषकन्या’ योग जातक के वैवाहिक जीवन में अशांति उत्पन्न करने का कार्य करता है।
विवाहित सुख से वंचित…
विषकन्या को एक ऐसा योग माना जाता है जो दाम्पत्य जीवन में हानि पहुंचाता है,वहीं इससे बचने के लिए विवाह से पहले वर-वधु की कुंडली को किसी विद्वान ज्योतिषी से दिखाते हुए ज़रूरी उपाय किए जाते हैं, अन्यथा विषकन्या योग जातक को पति-पुत्रहीन, सम्पत्ति हीन, सुख की न्यूनता आदि जैसे अशुभ फल देता है।
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अश्लेषा तथा शतभिषा : रविवार : द्वितीया
कृतिका अथवा विशाख़ा अथवा शतभिषा : रविवार : द्वादशी
अश्लेषा अथवा विशाखा अथवा शतभिषा : मंगलवार : सप्तमी
अश्लेषा : शनिवार : द्वितीया
शतभिषा : मंगलवार : द्वादशी
कृतिका : शनिवार : सप्तमी या द्वादशी

विषकन्या योग का नकारात्मक प्रभाव
विषकन्या योग के संबंध में माना जाता है कि इस योग से पीड़ित जातक को अपने जीवन में तो अशुभ फलों की प्राप्ति होती ही है। साथ ही उनके संपर्क में आने वाले लोगों का जीवन भी इस योग के प्रभाव से हमेशा अस्त-व्यस्त हो जाता है, जिसके चलते उनके जीवन में भी दुर्भाग्य छा जाता है। विषकन्या स्त्रियां अपने माता-पिता, भाई-बहन के साथ-साथ अपने ससुराल वालों के लिए भी कष्टकारी सिद्ध होती है।
इन स्थितियों में विषकन्या योग हो जाता है शून्य-
: यदि किसी की कुंडली में विषकन्या योग तो बन रहा है, परंतु जन्म लग्न या चन्द्र लग्न से सप्तम भाव में सप्तमेश या शुभ ग्रह बैठा हो तो कुंडली में ‘विषकन्या’ योग से बनने वाला हर प्रकार का दोष शून्य हो जाता है।
: इसके साथ ही कुंडली में सप्तमेश शुभ स्थिति में हो और सप्तम भाव गुरु से दृष्टि कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में भी ‘विषकन्या दोष’ दूर होता है।
: हालांकि इन स्थितियों के बावजूद भी स्त्री की कुंडली में विषकन्या योग की शांति कराना बेहद आवश्यक होता है।
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: जिस भी स्त्री की कुंडली में विषकन्या योग का निर्माण होता है उसे सर्वप्रथम हर वटसावित्री व्रत रखना चाहिए।