फिलहाल संरक्षित स्थल पर तार फेसिंग सहित अन्य कार्य किए जा रहे हैं। पहुंच मार्ग बनाया जा रहा है। ताकि पर्यटकों को आने में कोई परेशानी न हो। वन विभाग के एसडीओ संतोष रनसोरे ने बताया कि विभाग के माध्यम से छोटे-मोटे काम लगातार चल रहे हैं। पर्यटन को आकर्षित करने के लिए शासन स्तर पर लाइट एंड साउंड शो शुरू करने की योजना है।
देश-दुनिया के वैज्ञानिकों का शोध स्थल: समुद्री जीवों के जीवन काल पर शोध करने के लिए देश-दुनिया के कई वैज्ञानिक बाग क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। वैज्ञानिकों ने ही सर्वप्रथम पाया कि बाग के समीप ग्राम पाडलिया में डायनासोर के जीवाश्म व अंडे हैं। इसके बाद वन विभाग द्वारा इनके संरक्षण के कदम उठाए। जो लोग इनके बारे में जानते और पढ़ते हैं, वो तो आते रहते हैं। लेकिन आम आदमी की हैसियत से टूरिस्ट न के बराबर आते हैं।
पढ़ें ये इंट्रेरेस्टिंग फेक्ट्स
– आपको बता दें कि समय-समय पर यहां डायनासोर के अंडे और जीवाश्म मिलते रहे हैं। यहां मिले हैं अंडे और जीवाश्म शोधकर्ताओं के मुताबिक 2017 और 2020 के बीच क्षेत्र की जांच के दौरान, उन्होंने मध्य प्रदेश के धार जिले में बाग और कुक्षी क्षेत्रों में डायनासोर की व्यापक हैचरी पाई, विशेष रूप से अखाड़ा, ढोलिया रायपुरिया, झाबा, जमनियापुरा और पदल्या गांवों में ये पाए गए।
– नर्मदा घाटी के लामेटा फॉर्मेशन में किए गए शोध में मिले जीवाश्म से पता चला लाखों वर्ष पहले यहां डायनासोर घूमते थे और उनकी लाइफ से जुड़े कई रोचक फैक्ट्स भी।
2023 में मिले थे मल्टी शेल अंडे
दिल्ली विश्वविद्यालय और मोहनपुर-कोलकाता और भोपाल में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने पिछले वर्ष 2023 में भी मध्य प्रदेश के धार में बाग और कुक्षी क्षेत्रों में ओवम-इन-ओवो या मल्टी-शेल अंडे की खोज की सूचना दी थी। मल्टी-शेल अंडे के पीछे का कारण अंडे देने के लिए अनुकूल परिस्थितियों को खोजने में मां की अक्षमता हो सकती है। ऐसी स्थिति में अंडे डिंबवाहिनी (Oviduct) में रह जाते हैं और खोल का निर्माण फिर से शुरू हो जाता है। अंडे देने से पहले डायनासोर के मरने की भी घटनाएं हो सकती हैं। ये अंडे 15 सेंटीमीटर और 17 सेंटीमीटर डायमीटर के बीच के थे जो संभवतः कई टाइटनोसॉर प्रजातियों के थे। प्रत्येक घोंसले में अंडों की संख्या एक से लेकर 20 तक होती है।
नर्मदा घाटी में पाए गए घोंसले
शोधकर्ताओं को यहां शाकाहारी टाइटनोसॉर से संबंधित 256 जीवाश्म अंडों के कई घोंसलों का पता लगाया था। अंडे उस मुहाने से पाए गए थे, जहां टेथिस सागर का नर्मदा में विलय हुआ था, जब सेशेल्स भारतीय प्लेट से अलग हो गया था। सेशेल्स के अलग होने के कारण नर्मदा घाटी में 400 किलोमीटर अंदर टेथिस सागर घुस आया था।
हर्ष धीमान, विशाल वर्मा, और गुंटुपल्ली प्रसाद सहित अन्य शोधकर्ताओं की ये रिसर्च पीएलओएस वन शोध पत्रिका में भी प्रकाशित की गई थी। घोंसलों और अंडों पर अध्ययन में मिले इन घोंसलों और अंडों के एक अध्ययन से लंबी गर्दन वाले डायनासोर के जीवन के बारे में कई जानकारियां सामने आई थीं। आम तौर पर घोंसले एक दूसरे से कुछ दूरी पर होते हैं। नर्मदा घाटी में पाए गए घोंसले एक-दूसरे के करीब थे। इसमें पता चला था कि डायनासोर 66 मिलियन वर्ष से भी पहले इस नर्मदा घाटी क्षेत्र में घूमा करते थे।
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