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शहर के लिये ‘जीवन वाहिनी’ बन चुकी है ये बाइक एंबुलेंस
अजीज भाई की जुगाड़ से बनी ये बाइक एंबुलेंस शहर के लिये ‘जीवन वाहिनी’ बन चुकी है। इस एम्बुलेंस काे बाइक से टाेचन कर मरीज काे लेटाकर अस्पताल पहुंचाया जा सकता है। इस खास बाइक एंबुलेंस में जरूरी दवाइयाें से लेकर 25 किलाे ऑक्सीजन सिलेंडर तक की व्यवस्था की गई है। अजीज भाई किसी भी मय अपनी एंबुलेंस बाइक मुफ्त में शहर के किसी भी अस्पताल ले जाने देते हैं। लेकिन, इनकी शर्त ये है कि, अगर मरीज को ले जाते समय ऑक्सीजन की जरूरत पड़े, तो अस्पताल से वापस लौटते समय मरीज के परिजन को सिर्फ ऑक्सीजन सिलेंडर में गैस भरवा कर देनी होती है। अजीज भाई के मुताबिक, ये एंबुलेंस फिलहाल सात दिन पहले ही बकर तैयार हुई है और इसी दौरान अब तक इसपर 8 लाेगों काे मुफ्त में सकुशल अस्पताल छोड़ा गया है।
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मरीज के साथ दाे व्यक्ति भी हो सकते हैं सवार
वर्ष 2006 से पहले वे शहर के पाॅलीटेक्निक काॅलेज में व्याख्याता थे। 2006 में उन्होंने खुद का उद्याेग डाला। अजीज के मुतीबिक, मौजूदा समय में अकसर लोगों की जान सिर्फ सुविधाओं के अभाव में ही जा रही हैं। इसी बीच उनके एक करीबी द्वारा उन्हें एक एम्बुलेंस का बिल दिकाया गया, जिसमें मरीज काे ले जाने का शुल्क दस हजार रुपये लिखा हुआ था। ये देखकर वो काफी हैरान रह गए। अजीज भाई ने सोचा कि, जिन लोगों की हैसियत भी नहीं उन्हें अस्पताल पहुंचने से पहले ही ये नाजाइज खर्च चुकाना पड़ रहा है।
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बाइक एंबुलेस बनाने की ठानी
आपदा को अवसर बना बैठे इन निजी एंबुलेंस संचालकों को सबक सिखाने के लिये अजीज भाई को कम से कम एक एंबुलेंस खरीदनी पड़ती, लेकिन इतनी रकम अजीज भाई के पास भी नहीं थी। तब उन्होंने अपनी बाइक को को एम्बुलेंस बनाने का निर्णय लिया। अजीज ने पहले इंटरनेट से एम्बुलेंस में हाेने वाली सुविधाओं की जानकारी जुटाई। फिर एम्बुलेंस बनाना शुरू किया। इसमें दाे शाॅकप, रबर के पहिए, फेब्रिकेशन सहित उसकी चाैड़ाई इतनी रखी कि मरीज के साथ दाे लाेग और बैठ सकें। एम्बुलेंस निर्माण की लागत 30 हजार रुपये आई। दाे दिन में बाइक एम्बुलेंस बनकर तैयार हाे गई और अब ये किसी भी समय लोगों की जान बचाने को तैयार रहती है।
कर्मचारी बंशी के भाई की जान बची
बाइक एम्बुलेंस से अजीज की फैक्टरी के कर्मचारी बंशी के भाई अनिल की जान बची है। अजीज भाई बताते हैं सलकनपुर के बंशी के भाई की तबीयत सीरियस होने पर बंशी बाइक से एम्बुलेंस टाेचन कर उसे अस्पताल ले आए। अनिल को समय पर इलाज मिल जाने की वजह से अब उनकी हालत खतरे से बाहर है। इस वाहन से पिछले एक सप्ताह के भीतर ही सात अन्य लोगों की भी जान बचाई जा सकी है। अजीज भाई का कहना है कि, महंगाई के इस दौर में सरकार भी बाइकों पर इस तरह की एंबुलेंस बनवाकर ग्राम पंचायताें में इस सस्ती सुंदर एंबुलेंस की व्यवस्था कर सकती है, ताकि कच्चे-पक्के और सकरे से सकरे इलाके में रहने वाले मरीज की भी समय पर जान बचाई जा सके।