उल्लेखनीय है कि धमतरी में जून और जुलाई का महीना प्रदर्शनकारियों के नाम रहा। जुलाई का महीना बीतने में अभी 10 दिन और शेष हैं। इस बीच 15 जुलाई की स्थिति में पिछले 45 दिनों में जिस तरह से रोजाना धरना-प्रदर्शन हुए, उसे लेकर आम जनता भी काफी प्रभावित हुई हैं। सूत्रों के अनुसार ऐसे आंदोलनों में 8-10 मामले में एफआईआर दर्ज भी हो चुकी हैं।
सूत्रों के अनुसार जून के महीने में आंदोलनों की शुरूआत राजस्व पटवारी संघ से शुरू हुआ। वेतन विसंगति दूर करने की मांग को लेकर उन्होंने 15 मई से लेकर 16 जून तक गांधी मैदान में बेमुद्दत धरना दिया। पश्चात 1 जून से लेकर 19 जून तक प्रदेश सहकारी कर्मचारी संघ नियमितीकरण के लिए डटे रहे। इसके बाद किसान संघर्ष समिति ने केरेगांव चौक, गंगरेल बांध प्रभावित जन कल्याण संघ, शासकीय-अद्र्धशासकीय वाहन चालक एवं यांत्रिकी कर्मचारी संघ, स्वच्छता दीदी, सर्वविभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ, प्रदेश स्वास्थ्य कर्मचारी संघ, बठेना वार्डवासियों ने प्रदर्शन किया। 3 जुलाई को भाजयुमो ने कलेक्ट्रेट का घेराव किया। फिर शिवसेना, डूबान प्रभावित संघर्ष समिति, कर्मचारी-अधिकारी संयुक्त मोर्चा ने आंदोलन किया। 10 जुलाई को भाजपाईयों ने कोलियारी चौक में चक्काजमा किया। जुलाई के ही महीने में यूसीसी के विरोध में 10 जुलाई को गोंगपा तथा 12 जुलाई को अभाविप ने डीएड-बीएड कोर्स की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट में जमकर नारेबाजी कर प्रदर्शन किया। इसी दिन छग मध्यान्ह भोजन मजदूर एकता यूनियन (सीटू) ने बढ़ा हुआ 300 रुपए मानदेय एरियर्स के साथ भुगतान करने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन किया। फिर ग्राम रोजगार सहायक संघ ग्रेड-पे की मांग को लेकर गांधी मैदान में हड़ताल शुरू कर दी। इसी दिन गुजरा में ग्रामीणों ने सड़क चौड़ीकरण के लिए चक्काजाम कर दिया।
हाइवा बंद करने प्रदर्शन
13 जुलाई को भाजयुमो कार्यकर्ताओं ने सड़कों की खराब स्थिति को लेकर हाइवा बंद करने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन किया। इसके बाद संविदा कर्मचारी संघ, बिजली विभाग संविदा आपरेटर, लिपिक वर्गीय कर्मचारी संघ ने प्रदर्शन किया। 15 जुलाई को गांधी मैदान में स्वच्छता दीदीयों ने धरना देकर बैठ गई।
आम जनता की बढ़ी परेशानी
उधर, आए दिन होने वाले धरना-प्रदर्शन और घेराव कार्यक्रमों से कलेक्ट्रेट, जिला पंचायत, जनपद पंचायत, नगर निगम समेत अन्य दफ्तरों का कामकाज बुरी तरह से प्रभावित हो गया है। नागरिक सुदर्शन ठाकुर, सत्यावन ध्रुव, महेश साहू ने कहा कि राशन कार्ड, पीएम आवास, आय-जाति, निवास प्रमाण पत्र, आयुष्मान कार्ड, नक्शा-खसरा आदि कार्यों को लेकर जब लोग दफ्तरों में पहुंचते हैं, तो संबंधित अधिकारी-कर्मचारी ही नहीं मिलते। ऐसे में प्रशासनिक कामकाज पर भी इन आंदोलनों का गहरा असर पड़ा है। ऐसे में आम जनता की ही परेशानी बढ़ रही है।
प्रशासन की खुली पोल
लोकतांत्रिक ढंग से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने का सभी को अधिकार है। शायद यही वजह है कि चुनावी वर्ष में आंदोलन करने की बाढ़ आ गई है। इसके साथ ही चक्काजाम, पुतला दहन जैसे मामले में प्रशासन की कलई भी खुल गई है। कई बार आंदोलनकारियों के सामने प्रशासनिक अधिकारी बेबस नजर आ रहे हैं। एक अधिकारी ने बताया कि प्रदेश में जिस तरह से माहौल बन रहा है, ऐसे में कल कोई भी सत्ता में आ सकता है। हमें आगे भी अपनी नौकरी करनी है।