दरअसल, राजस्थान भाजपा के वरिष्ठ नेता, किरोड़ी लाल मीणा ने राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। डॉक्टर से लेकर, विधायक और सांसद बनने तक का सफर उन्होंने अपनी मेहनत, जनता से जुड़ाव और निस्वार्थ सेवा के बलबूते पर तय किया है। उनके व्यक्तित्व में दृढ़ संकल्प और समाज सेवा का जज़्बा गहरे से रचा-बसा है, जो उन्हें जनता के बीच बेहद लोकप्रिय बनाता है।
बता दें, किरोड़ी लाल मीणा वर्तमान समय में राजस्थान की राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चित चेहरों में से एक हैं। क्योंकि किरोड़ी लाल युवाओं, गरीबों, पीड़ितों और शोषितों की सबसे बुलंद आवाज माने जाते हैं। हाल में किरोड़ी लाल मीणा इस वजह से भी चर्चा में है, क्योंकि दौसा विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में उनके भाई को बीजेपी से टिकट मिला है और वो जोर-शोर से चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
किरोड़ी लाल मीणा का जन्म राजस्थान के दौसा जिले में हुआ है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही हुई। उसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए बीकानेर चले गए। उन्होंने साल 1977 में सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज, बीकानेर से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक चिकित्सक के रूप में सेवा दी। बाद में वह डॉक्टरी छोड़कर सक्रिय राजनीति में कूद गए। बताया जाता है किरोड़ी लाल मीणा का सक्रिय राजनीति में आना 1980 के दशक में हुआ था, हालांकि उससे पहले वह संघ से जुड़े हुए थे। हाल ही में एक भाषण में उन्होंने बीकानेर कॉलेज में पढ़ने के दौरान आपातकाल के समय का एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि मैं संघ का स्वयंसेवक था और इमरजेंसी के दौरान जेल में डालकर यातनाएं दी गईं। उस समय मैंने जगमोहन को कह दिया था कि मैं गिरफ्तार हो जाऊं तो घरवालों तक बात नहीं पहुंचनी चाहिए। मेरे भाई को धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि भगवान के भाई लक्ष्मण हुए थे या मेरा भाई जगमोहन हुआ है। मेरे जेल में रहने के दौरान इन्होंने भूमिगत रहते हुए जो सेवा की, उसकी जितनी तारीफ की जाए, वह कम है। हमारा पूरा परिवार राष्ट्रीयता की भावनाओं से ओत-प्रोत है। हम उस विचारधारा से मजबूती से बंधे हुए हैं।
यह भी पढ़ें
Rajasthan By Election 2024: उपचुनाव में कल से सचिन पायलट की होगी एंट्री, किरोड़ी लाल की बढ़ेगी टेंशन
किरोड़ीलाल का राजनीतिक सफर
किरोड़ीलाल मीणा पहली बार 1985 में दौसा जिले के महवा से बीजेपी के टिकट पर राजस्थान विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद 1989 में, उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता। वहीं 2003-2008 के बीच राजे के नेतृत्व वाली पहली सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए। इसके बाद 2008 में जब जनता के बीच उनकी राजनीतिक पकड़ शीर्ष पर थी तब वसुंधरा राजे से उनके राजनैतिक रिश्ते में खटास आ गई। परिणाम यह हुआ कि बीजेपी से उन्हें निष्काषित कर दिया गया। इसके बाद किरोड़ी के राजनीतिक रसूख को देखते हुए 2008-13 की तत्कालीन गहलोत सरकार में एक मंत्री के रूप में उनकी पत्नी गोलमा देवी को जगह दी गई जो निर्दलीय के रूप में 2008 के विधानसभा चुनाव जीतकर आई थी। हालांकि गोलमा देवी कुछ समय ही सरकार में रही और कांग्रेस नेताओं पर उनके पति का अपमान करने का आरोप लगाया। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में, किरोड़ी लाल ने दौसा से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और बीजेपी और कांग्रेस दोनों उम्मीदवारों को हराकर जीत हासिल की।
यह भी पढ़ें
Jodhpur Murder Case: बेनीवाल बोले- ‘महिला जाट समाज की, इसलिए सरकार…’, शंकर मीणा हत्याकांड का क्यों किया जिक्र?
राजे से टकराव की क्या थी वजह?
आपको बता दें साल 2006 में राजस्थान में पहली बार गुर्जर समुदाय के लोग आरक्षण की मांग को लेकर करौली ज़िले के हिंडौन शहर में सड़कों पर उतरे थे। तब गुर्जर ख़ुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग कर रहे थे। इस मांग के विरोध में पूर्वी राजस्थान में मीणाओं का नेतृत्व किरोड़ी लाल मीणा ने किया। राजस्थान सरकार में तब खाद्य मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से मुलाकात कर जनजातीय आरक्षण से छेड़छाड़ नहीं करने की मांग की थी। इसके बाद 2007 में गुर्जर आंदोलन हिंसक हुआ और पूरे राजस्थान में फैल गया। उसी दौरान किरोड़ी लाल मीणा का बंगला गुर्जर आंदोलन के विरोध का केंद्र बन गया। गुर्जर समाज की आरक्षण की मांग के विरोध में लालसोट में गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। सरकार गुर्जर समाज से सुलह में जुटी थी उसी दौरान किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और मीणा समाज के मसीहा के तौर पर उभर गए। लोकप्रियता के शिखर पर चढ़ते हुए किरोड़ी लाल मीणा के गुर्जर आंदोलन के दौरान ही वसुंधरा राजे से सियासी संबंध लगातार बिगड़ते गए और 2008 में किरोड़ी को भाजपा से निकाल दिया गया।
2013 में पकड़ी अलग राह
फिर राजस्थान में हुए 2013 के चुनाव में वे पीए संगमा की पार्टी नेशनल्स पीपुल्स पार्टी का हिस्सा बन गए। उन्होंने 150 उम्मीदवार खड़े किये थे। मगर उनमे से केवल चार ही जीत पाए। 10 वर्ष बाद 2018 में उनकी फिर से घर वापसी हुई और वह फिर से वापस बीजेपी ज्वाइन कर ली। बीजेपी में आते ही पार्टी ने उन्हें राजस्थान से राजसभा सांसद बनाकर दिल्ली भेज दिया। इसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में फिर से बीजेपी ने उनको सवाई माधोपुर से टिकट दिया, जहां से उन्होंने जीत दर्ज की। फिर भजनलाल सरकार में किरोड़ी लाल को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। लेकिन कुछ कारणों से उन्होंने मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया जो खबर लिखे जाने तक स्वीकार नहीं हुआ है और अधर में लटका हुआ है। गौरतलब है कि किरोड़ी लाल मीणा का राजनीतिक सफर कई लोगों के लिए प्रेरणादायक रहा है। वे कई बार विधायक और सांसद रह चुके हैं और अपने विधानसभा क्षेत्र के विकास में हमेशा सक्रिय रहे हैं। किरोड़ी लाल मीणा को उनकी ईमानदारी और सादगी के कारण समाज के हर वर्ग का समर्थन प्राप्त है। वे हमेशा जनता से जुड़े रहते हैं और क्षेत्र के छोटे-बड़े मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखते हैं। उनके इस जुड़ाव और निष्ठा के कारण वे जनता के चहेते नेता बने हुए हैं।