दौसा

पहचान खोती जा रही हैं धरोहरें, किले-बावडिय़ों की अनदेखी

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दौसाSep 17, 2018 / 08:08 am

gaurav khandelwal

पहचान खोती जा रही हैं धरोहरें, किले-बावडिय़ों की अनदेखी

दौसा. जिला मुख्यालय पर देवगिरी पहाड़ी की गोद में बने सैकड़ों वर्ष पुराने सूप आकार के ऐतिहासिक दुर्ग समेत जिलेभर के दर्जनों किले व बावडिय़ां संरक्षण के अभाव में जीर्ण-शीर्ण होते जा रहे हैं। न इन किले व बावडिय़ों की मरम्मत के लिए सरकारी संरक्षण मिल रहा है और ना ही स्थानीय। ऐसे में ऐतिहासिक धरोहरें अपनी पहचान खोती जा रही हैं।
 


दौसा का किला


जिला मुख्यालय की देवगिरी पहाड़़ी की गोद में बने इस किले का निर्माण इतिहास में बडग़ूजरों (गुर्जर- प्रतिहार) द्वारा कराया बताया जाता है। इतिहास में यह भी उल्लेख है कि दौसा कच्छवाहा वंश की पहली राजधानी थी। सूप आकार के इस किले को दुश्मन द्वारा भेद पाना बहुत ही कठिन ही नहीं असम्भव था। किले में विशाल मैदान है जो फुटबॉल मैदान के रूप में प्रसिद्ध है। इस किले में हाथी पोल, मोरी दरवाजा है। जो छोटा व संकरा है। यह सागर जलाशय में खुलता है। यही कारण है कि आज किले में आगे जो मोहल्ला उसको सागर मोहल्ले के नाम जाना जाता है।
 


परकोटे में हैं देव संगम


किले के सामने वाला भाग दोहरे परकोटे से परिवेष्टित है। इसमें मोरी दरवाजे के पास राजाजी का कुआं है। इसी के पास में ही चार मंजिला बावड़ी है। बावड़ी के समीप ही बैजनाथ महादेव मंदिर है। परकोटा परिसर में रामचंद्रजी, दुर्गामाता, जैन मंदिर एवं एक मस्जिद भी है। दुर्ग की चोटी पर गढ़ी में नीलकण्ठ महादेव का मंदिर है। गढ़ी के सामने 13 फीट 6 इंच लम्बी तोप है।
 

यही नहीं गढ़ी के भीतर अश्वशाला, चौदह राजाओं की साल, प्राचीन कुण्ड एवं सैनिकों के लिए विश्रामगृह स्थित है। राजा भारमल के शासन काल में आमेर के दिवंगत राणा पूरणमल के विद्रोही पुत्र ‘सूजाÓ (सूजामल) की हत्या लाला नरुका ने दौसा में की थी, जिसका स्मारक किले में मोरी दरवाज़े के बाहर सूर्य मंदिर के पास में स्थित है। यहां सूरजमल भोमिया का भी प्रसिद्ध मंदिर है। जिसकी महिमा दूर-दूर तक विख्यात है।
 

 

इन पर भी नहीं है कोई ध्यान


दौसा जिले में न केवल देवगिरी का ही किला प्रसिद्ध है, बल्कि जिलेभर में दर्जनों किले व बावडिय़ों का महत्व भी कम नहीं है। जौण-थूमड़ी, खवारावजी, लवाण, गढ़हिम्मतसिंह, सायपुर पाखर, ठेकड़ा, महुवा, खोंचपुरी खोहरी, बडग़ांव, गोल समेत कई जगह विशाल किले हैं। इसी प्रकार दौसा जिला मुख्यालय, आभानेरी,भाण्डारेज, जौण, बैड़ाखोह, कालेड़ी, सर्र, खवारावजी, पापड़दा, लवाण समेत दर्जनों बावडिय़ां भी है। बावडिय़ों की खुदाई हो जाए तो इनमें पानी हो सकता है।
 

 

रोज गिरता है कबाणियां की दीवारों से चूना


दौसा से 13 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व छोटे से कस्बे आलूदा में बावड़ी के ऊपर कबाणियां बना हुआ है। करीब सात सौ वर्ष पहले राजपूतों ने इसका निर्माण कराया था। सबसे बड़ी खास बात यह है कि कबाणियां की बनावट नावा आकार की है। इसमें पट्टियों का उपयोग नहीं हुआ है। नीचे बावड़ी है। उस वक्त रास्ते के किनारे इसके निर्माण मुख्य उ्द्देश्य गर्मियों में राहगीरों के लिए बावड़ी में पानी पीने के बाद विश्राम करने के लिए दो मंजिले कबाणियां का निर्माण कराया था। लेकिन अब यह धीरे-धीरे जीर्ण-शीर्ण होती जा रही है।
 


जौण भी बन सकता है बड़ा पयर्टक स्थल


जनश्रुतियों की माने तो कहा जाता है कि जौण का पुराना गांव जो पहले जैन समाज का बड़ा शहर था। आज भी इस गांव में जैन मंदिर, शिव मंदिर व बावडिय़ां हैं। दर्जनों मकान खण्डहर पड़े हैं। यदि इस गांव को संरक्षण मिले तो पहाड़ी की तलहटी में बना यह गांव पर्यटन स्थल का रूप ले सकता है, लेकिन कोई ध्यान नहीं है।

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