देश की आजादी के समय 1947 में दिल्ली के लालकिले की प्राचीर पर जो पहला तिरंगा लहराया था, उसका कपड़ा दौसा जिले के आलूदा गांव के चौथमल व नानगराम महावर ने बुना था। जानकारों की माने तो वह यह झण्डा दिल्ली में सुरक्षित रखा है। अब देश में गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस पर जो तिरंगा लहराया जाता है, वह यहां बुना कपड़ा की काम में लिया जाता है।
बनेठा गांव में प्रवेश करने पर छोटे-छोटे मकान व उनमें लगे हथकरघे नजर आएंगे। वर्षों से यहां के कारीगर देश के लिए तिरंगे का कपड़ा (झण्डा क्लोथ) बुन रहे हैं। बुनकरों ने बताया कि उनको गर्व है कि वे उनका बुना कपड़ा देश के तिरंगे के काम का आ रहा है।
गौरतलब है कि दौसा खादी समिति के अधीन थूमड़ी, छारेड़ा, कालीखाड़, रजवास, नांगल राजावतान, दौसा व आलूदा में भी बुनकर है, लेकिन यहां झण्डा क्लोथ सिर्फ बनेठा में ही बुना जाता है। बनेठा में जो कारीगर झण्डा क्लोथ तैयार कर रहे हैं, उनको भी हथ करघा हाथ से ही चलाना पड़ रहा है। जबकि इस आधुनिकता में उनके लिए कपड़ा बुनने के लिए नई मशीनें या करघे आने चाहिए। साथ ही काम को बेहतर करने के लिए प्रशिक्षण भी देने की जरूरत है।
यह भी पढ़ें