दतिया जिला अस्पताल के मेटरनिटी विंग में प्रतिदिन होने वाली डिलीवरी में अस्वस्थ बच्चों की बढ़ती संख्या स्वास्थ्य विभाग के साथ ही प्रशासन और सरकार के लिए भी चिंता का विषय है। यहां नवजातों को इलाज के लिए एसएनसीयू में एक से दो महीने तक भर्ती रखना पड़ रहा है। इनमें कई बच्चे ऐसे भी है जिन्हें वेंटीलेटर पर भी रखना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में मां के साथ परिजनों को भी अस्पताल में कई कई दिनों तक रुकना पड़ रहा है। चिकित्सकों की मानें तो गर्भावस्था में गभर्वती महिला खानपान का बेहतर नहीं होना इस समस्या का प्रमुख कारण है।
यह भी पढ़ें: फंस गए विधायक, रद्द हो सकती है सदस्यता! हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए खारिज कर दीं आपत्तियां प्रति दिन पैदा हो रहे नवजात शिशुओं में जन्म के साथ ही कई तरह की बीमारी सामने आ रही हैं। इनमें कम वजन और सांस लेने में तकलीफ वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। इन्हें इलाज के लिए एसएनसीयू में एक से दो महीने तक भर्ती रखना पड़ रहा है। कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें वेंटीलेटर पर भी रखना पड़ता है।
शिशु रोग विशेषज्ञ एवं सह प्राध्यापक डॉ. मनीष अजमेरिया बताते हैं कि मां और बच्चे की स्वस्थ डिलीवरी के लिए जरूरी है कि गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के संदर्भ में समय समय पर गायनेकोलॉजिस्ट से परामर्श लें। स्वास्थ्य परीक्षण के साथ सोनोग्राफी कराएं। मां का खानपान पौष्टिक और संतुलित होना चाहिए। सुबह-शाम टहलना सहज प्रसव और स्वास्थ्य के लिए गर्भवती के लिए फायदेमंद है। समय पूर्व प्रसव जैसी पीड़ा शुरू होने पर चिकित्सक को दिखाएं। पानी खूब पियें और व्यायाम करें। कमजोश शिशु पैदा होने के बाद अगले एक सप्ताह तक वजन घटता है। उसके बाद धीरे धीरे बढऩे लगता है। सप्ताह भर बाद भी यदि शिशु का वजन नहीं बढ़ रहा है तो ये बीमारी है।
कम वजन के शिशु पैदा होने की वजह
समय पूर्व प्रसव होना यानि 9 माह पहले प्रसव होना।
मां के गर्भ में शिशु द्वारा मल त्याग कर लेना।
जन्मजात विकृति के चलते भी शिशु कमजोर जन्म लेता है
बच्चे के सिर में सूजन होना।
प्रसव के दौरान मां या बच्चे इंफेक्शन फैलना
समय पूर्व प्रसव होना यानि 9 माह पहले प्रसव होना।
मां के गर्भ में शिशु द्वारा मल त्याग कर लेना।
जन्मजात विकृति के चलते भी शिशु कमजोर जन्म लेता है
बच्चे के सिर में सूजन होना।
प्रसव के दौरान मां या बच्चे इंफेक्शन फैलना
गर्भवती रखें ध्यान
गर्भवती महिला को तनाव मुक्त रहने की जरूरत होती है। इसके अलावा काम में व्यवस्तता के चलते कई बार एक टाइम खाना लेने में भी लापरवाही हो जाती है जबकि ऐसा करने से पेट में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। ऐसी महिलाओं को पौष्टिक भोजन करना चाहिए। खास बात ये है कि समय पर आहार लिया जाए। सुबह का खाना दोपहर और शाम का आहार देर रात न नहीं लेना चाहिए। खुशनुमा वातावरण में रहने का प्रयास करने चाहिए। स्वास्थ्य संबंधी समस्या उत्पन्न होने पर तत्काल चिकित्सक से परामर्श करने की आवश्यकता होती है।
गर्भवती महिला को तनाव मुक्त रहने की जरूरत होती है। इसके अलावा काम में व्यवस्तता के चलते कई बार एक टाइम खाना लेने में भी लापरवाही हो जाती है जबकि ऐसा करने से पेट में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। ऐसी महिलाओं को पौष्टिक भोजन करना चाहिए। खास बात ये है कि समय पर आहार लिया जाए। सुबह का खाना दोपहर और शाम का आहार देर रात न नहीं लेना चाहिए। खुशनुमा वातावरण में रहने का प्रयास करने चाहिए। स्वास्थ्य संबंधी समस्या उत्पन्न होने पर तत्काल चिकित्सक से परामर्श करने की आवश्यकता होती है।
यह भी पढ़ें: एमपी में कर्मचारियों को वेतन वृद्धि की सौगात, मंत्रियों ने कहा- जल्द होगी बढ़ोत्तरी गर्भावस्था में लें विशेष भोजन
गर्भावस्था में पेट में पल रहे भ्रूण के बेहतर स्वास्थ्य के लिए गर्भवती महिला को सेहतमंद आहार लेने की जरूरत है। इनमें दूध पीने के अलावा अलग.अलग विटामिन के लिए हर प्रकार के फल खाना चाहिए। गर्भवती का हीमोग्लोबिन सही होना आवश्यक है। इसके लिए रक्त बढ़ाने वाले फल व सब्जियों का सेवन भी करना चाहिए। इसके बावजूद गर्भवती महिला का सतत चेकअप कराया जाना भी आवश्यक है। ऐसे में पेट में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ्य के बारे में पता चलता रहता है।
गर्भावस्था में पेट में पल रहे भ्रूण के बेहतर स्वास्थ्य के लिए गर्भवती महिला को सेहतमंद आहार लेने की जरूरत है। इनमें दूध पीने के अलावा अलग.अलग विटामिन के लिए हर प्रकार के फल खाना चाहिए। गर्भवती का हीमोग्लोबिन सही होना आवश्यक है। इसके लिए रक्त बढ़ाने वाले फल व सब्जियों का सेवन भी करना चाहिए। इसके बावजूद गर्भवती महिला का सतत चेकअप कराया जाना भी आवश्यक है। ऐसे में पेट में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ्य के बारे में पता चलता रहता है।
फैक्ट फाइल
जिला अस्पताल में औसतन 600 से अधिक प्रसव
85 से 90 शिशु पैदा हो रहे अस्वस्थ
200 से अधिक शिशु एसएनसीयू में हो रहे भर्ती
40 फीसदी शिशु ऐसे जो जन्म लेने के बाद रोते नहीं
जिला अस्पताल में औसतन 600 से अधिक प्रसव
85 से 90 शिशु पैदा हो रहे अस्वस्थ
200 से अधिक शिशु एसएनसीयू में हो रहे भर्ती
40 फीसदी शिशु ऐसे जो जन्म लेने के बाद रोते नहीं