दमोह

जब वर्षों पुराने किले का रहस्य जानने पहुंचे स्कूली बच्चे

प्रसिद्ध झारखंडी स्थल पर पर्यटना प्वाइंटों से अवगत कराया

दमोहJan 07, 2018 / 08:37 pm

नितिन सदाफल

सैकडों वर्ष पुराने किले की ऐतिहासिकता को भ्रमण

फतेहपुर. क्षेत्र के फतेहपुर, बरी कनौरा, लिधोरा भिलौनी सहित अन्य गांव के स्कूली बच्चों को वन विभाग द्वारा क्षेत्र के प्रसिद्ध झारखंडी स्थल पर पर्यटना प्वाइंटों से अवगत कराया गया। इस मौके पर वन विभाग के अधिकारी बच्चों को लेकर प्राचीन किला पहुंचा और प्राचीन धरोहरों की विभिन्न जानकारियों से अवगत कराया। देखने में आया कि झारखंडी की ऐतिहासिक इमारतों के बीच बड़ी बड़ी शिलाओं से होकर बहते झरने को देखकर बच्चे काफी प्रशन्न हुए। बच्चों को सैकडों वर्ष पुराने किले की ऐतिहासिकता को भ्रमण कराकर लगभग 1100 वर्ष प्राचीन किले के इतिहास को बताया गया। उन्हें जानकारी दी गई कि यह स्थान झारखंड के नाम से जाना जाता था और यहां पर राजा बखतबली का शासन चलता था। इस मौके पर बच्चों की पिकनिक का भी आयोजन किया गया था। वन परिक्षेत्र अधिकारी प्रदीप शुक्ला ने बताया कि विभाग की तरफ से यहां बच्चों के लिए यह आयोजन कराया जा रहा है। इस मौके पर परिक्षेत्र अधिकारी सतीश पाराशर, जेपी दुबे, वर्मा चौरसिया, जिला पंचायत सदस्य परमापंद कुशवाहा, नीरज तिवारी व स्कूली शिक्षक सहित स्थानीय लोग मौजूद थे।
 

 

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टीकमगढ़. देश भर में अनेक ऐसे किला हैं, जिन्हें हम जैसा देखते है, वैसा ही पाते हैं। लेकिन यह कहानी है उस रहस्यमयी किला की, जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे है। जिसकी विशेषता ही इतनी डरावनी है कि अनेक लोग इसे सुनकर ही यहां जाने के बारे में सोचते हैं। बावजूद इसके यहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। इस किला का विशेषता यह है कि १२ किलोमीटर दूर से किला की आकृति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, लेकिन जैसे ही हम किला के नजदीक जाते है किला वैसे-वैसे गायब होने लगता है। नजदीक पहुंचने के बाद तो जैसे कुछ समझ पाना ही मुश्किल होता है कि जो दूर देखा था, क्या हम वहीं हैं। इतना ही इस किले की कहानियां भी डरावनी हैं।
हम बात कर रहे है बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में स्थित गढ़ कुंडर किला की। यह किला मध्य भारत में मध्य भारत राज्य के उत्तर में स्थित एक छोटे से गांव में स्थित उच्च पहाड़ी पर स्थित है। ओरछा से सिर्फ 70 किमी दूर है। यह मध्यप्रदेश में विरासत के किले में से एक है और प्रेम, प्रेम लालच और भयानक तोडफ़ोड़ का एक महान इतिहास है। गढ़ कुंडर इतिहास में प्रमुख व्यक्तित्व नागदेव और रूपकुन्वर हैं। उनकी प्रेमिका की कहानियां अभी भी बुंदेलखंड के लोक गीतों में हैं। यह इस तरह से स्थित है कि 12 किमी से यह नग्न आंखों से दिखाई देता है, लेकिन आप इसे करीब पहुंचते हैं, यह विहीन दिखाई देता है और उसे ढूंढना मुश्किल हो जाता है। यह 1539 ईसवी तक राज्य की राजधानी का इस्तेमाल किया गया था। बाद में राजधानी को बेतवा नदी के तट पर ओरछा स्थानांतरित कर दिया गया था।
रहस्यमयी किला: जो दूर से आता है नजर, पास जाते ही हो जाता है गायब
यह है डरावनी कहानी, पूरी बरात हो गई थी गायब
स्थानीय निवासी इस किले के बारे में जो बताते है, उसे कुछ डरावनी कहानियां भी है। स्थानीय वृद्ध डोमन सिंग बताते है कि अनेक वर्षों पूर्व इस किले मे घूमने के लिए आई पूरी की पूरी बारात गायब हो गई थी। जिसके बारे में अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है। यह बारात अब भी रहस्य बनी हुई है। डोमन सिंग के अनुसार काफी समय पहले यहां एक गांव में एक बारात आई थी, जिसमें करीब ७० लोगों के शामिल होना बताते है। जो कि सभी गढ़ कुंडर के किला घूमने के लिए गए थे। बताया जाता है कि बाराती किला में घूमते-घूमते वहां चले गए थे, जहां कोई नहीं पहुंच सकता था। यह किला का जमीनी के भीतर का हिस्सा बताया जाता है। इसके बाद बाराती वापस ऊपर नहीं आ सके। इस तरह पूरी की पूरी यहां गायब हो गई थी। बताया यह भी जाता है कि इस घटना के बाद जमीन से जुड़े दरबाजों को बंद कर दिया गया था। गढ़कुंडार के रहस्यों के बारे में ग्रामीणों द्वारा और अधिक तो बताया गया, लेकिन इशारों ही इशारों में इतना जरूर कह दिया कि किला रहस्य से भरा हुआ है। किले की एक और विशेषता है कि भूलभुलैया और अंधेरा रहने के कारण दिन में भी यह किला डरावना लगता है।

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