हटा . वैसे तो बुदेलखंड में भी दीपावली परंपरागत तरीके से मनाई जाती है लेकिन बुन्देलखण्ड की उपकाशी कहीं जाने वाली नगरी हटा में भी व अन्य कुछ जगहों में दीवारी नृत्य दीपावली के दौरान आकर्षण का केंद्र रहता है। यहां छतरपुर जिले से आने वाले मोनिया स्थानीयए चंडी जी मंदिर गौरीशंकर मंदिर में दिवारी नृत्य का अलग अंदाज में ही प्रस्तुत किया जाता है। ढोलक की थापए घूंघरू की झंकारए लाठी की चटकार और हैरतअंगेज कर देने वाले कारनामे यहां की दिवारी नृत्य में देखने को मिल जाएंगे। दीपावली के अगले दिन दिवारी खेलने वालों की टोली गांवों से लेकर शहर तक निकलती है तो अपने नृत्य से हर किसी को आकर्षित करती है। बदलते दौर में बुंदेली शौर्य का प्रतीक दीवारी नृत्य अब कुछ लोगों तक ही सिमट गया है।
जानिए क्या है दीवारी नृत्य रू
दीवारी नृत्य की परंपरा वर्षो पुरानी है। दीपावली के दिन मिट्टी की बनी ग्वालिन ;महिला का स्वरूपद्ध का पूजन करते हैं। मौन धारण ;मौन चराने वालेद्ध करने वाले व्यक्ति दीपावली के दूसरे दिन सुबह गाय के बच्चे की पूंछ ;बछियाद्ध को पूजकर दिवारी खेलने के लिए निकल जाते हैं। मौन चराने वाले पूरे दिन अन्न जल ग्रहण नहीं करते। सुबह से लेकर रात तक दिवारी नृत्य खेला जाता है। दिवारी खेलने वालों की संख्या बुन्देलखण्ड में लाखों की होती है। एक साथ कई लोगों का लाठी से मुकाबला करने की कला के साथ जिमनास्टिक का भी अनोखा प्रदर्शन करते हैं। अब इस नृत्य को बुन्देलखण्ड की दिवारी नृत्य का नाम दिया गया है। दीपावली के अवसर पर दिवारी नृत्य खेलना और देखना शुभ माना जाता है। ऐसे में बुन्देलखण्ड के तमाम लोग त्योहार पर इस नृत्य का लुत्फ उठाते हैं। अब यह परंपरा सिमट गई है। बाहर से आए मोनिया गोपी यादव बताते हैं कि उन्होंने खेत में अखाड़ा बनाया है। यहां गांव के बच्चों के साथ पूरे साल वह अभ्यास करते है। आसपास के कई गांवों के लोग पहुंचते है। दीवावली के दिन अपने घर पर दीवारी नृत्य का सामूहिक आयोजन होता है। इसके अलावा बुन्देलखण्ड के प्रसिद्ध धर्मस्थलों पर जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते है। गोपी यादव बताते है कि पहले यह नृत्य गांव गांव लोक प्रिय था। बदलते दौर में लोगों का रूझान इससे कम हुआ है। हालांकि इस बर्ष दीपावली की परमा दो दिन होने की वजह से कम ही मोनिया मंदिरों में पहुंचेए उनके साथियों का कहना है कि वह देर रात तक और मोनिया पहुंचेंगे।
Hindi News / Damoh / बुंदेलखंड में आज भी बरकरार है दीवारी की रोचकता