दमोह

प्राकृतिक स्थल उपेक्षा का शिकार, पर्यटन को बढ़ाने इनकी सुरक्षा पर नहीं है ध्यान

दमोह. जिला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का केंद्र है। यहां कई प्राचीन मंदिर, किले, ऐतिहासिक स्थल व संरचनाएं हैं, जिनका वास्तुकला में खास योगदान रहा है। लेकिन वर्तमान परिवेश में इन धरोहरों की स्थिति आज संरक्षण के अभाव में ङ्क्षचताजनक होती जा रही है।

दमोहNov 06, 2024 / 06:33 pm

हामिद खान

प्राकृतिक स्थल उपेक्षा का शिकार,

दमोह को पर्यटन हब बनाने के लिए खामियों में सुधार जरूरी
दमोह. जिला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का केंद्र है। यहां कई प्राचीन मंदिर, किले, ऐतिहासिक स्थल व संरचनाएं हैं, जिनका वास्तुकला में खास योगदान रहा है। लेकिन वर्तमान परिवेश में इन धरोहरों की स्थिति आज संरक्षण के अभाव में चिंताजनक होती जा रही है। दमोह के प्रसिद्ध स्थलों में सिंगौरगढ़ किला, नोहटा शिव मंदिर शामिल हैं, तो प्राकृतिक स्थलों में निदान वाटरफॉल, सिंगौरगढ़ का तालाब आदि शामिल हैं। जहां किले और मंदिर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्त्व रखते हैं, तो वहीं प्राकृतिक स्थल भी अपनी विशेष खूबसूरती से पहचाने जाते है। हालांकि इन स्थलों की ओर प्रशासन का ध्यान नहीं है। जिससे किले की दीवारें खंडित हो रही हैं।
प्राकृतिक स्थल उपेक्षा का शिकार,
प्राकृतिक स्थल भी उपेक्षा का शिकार हैं। यहां तक कि प्राचीन मंदिरों के आसपास की साफ सफाई और रखरखाव की कमी स्पष्ट दिखाई देती है। ऐसे में जर्जर संरचनाओं को संरक्षण की बेहद आवश्यकता है। पर्यटन के क्षेत्र में जिले में अपार संभावनाएं हैं। लेकिन ये तभी संभव है, जब ऐतिहासिक व प्राकृतिक स्थलों को विकसित और संरक्षित किया जाए। इस संबंध में विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि पर्यटन को लेकर संजीदगी से काम हो तो बेहतर परिणाम सामने आएंगे। जिन स्थलों को पर्यटन के लिए विकसित किया जाए, वहां बुनियादी सुविधाएं, नई सड़कों का निर्माण व खराब सड़कों की मरम्मत और पर्यटकों से जुड़ी सुविधाएं उपलब्ध होना चाहिए।
वर्तमान में जिले के ऐतिहासिक व प्राकृतिक स्थलों को उपेक्षा हो रही है, जिससे धरोहरों के अस्तित्व पर संकट के बदल मंडरा रहे हैं। यदि पर्यावरण संरक्षण और धरोहर स्थलों को बचाने के लिए संतुलित योजना बनाई जाए, तो इससे न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि जिले में रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं और स्थानीय संस्कृति को संरक्षित किया जा सकता है।
जिले में संरचनाओं के संरक्षण में प्रमुख कमियां

संरचनाओं की उपेक्षा: ऐतिहासिक स्थलों पर मरम्मत और संरक्षण कार्य समय पर नहीं होते। दीवारों में दरारें और छतों की जर्जर स्थिति तेजी से बिगड़ रही है। जिससे संरचनाओं का अस्तित्व खतरे में है।
पर्यावरण संरक्षण का अभाव: इन स्थलों के आसपास पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं है। बढ़ती मानव गतिविधियों से प्राकृतिक वातावरण प्रभावित हो रहा है, जिससे स्थलों की ऐतिहासिक महत्ता को खतरा है।
सुविधाओं का अभाव: पर्यटकों के लिए बुनियादी सुविधाओं, जैसे पेयजल, शौचालय आदि कमी है। यह पर्यटन अनुभव को प्रभावित करता है और स्थलों पर कचरा और गंदगी बढऩे का कारण बनता है।

जागरूकता की कमी: स्थानीय समुदायों में इन स्थलों के महत्व और संरक्षण की आवश्यकता को लेकर जागरूकता की कमी है। जनसहभागिता की कमी के कारण संरक्षण प्रयास उतने प्रभावी नहीं हो पाते, जितने होने चाहिए।

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