दमोह

सिलापरी में देखने मिलते हैं महाभारत कालीन शैलचित्र

उपेक्षा के चलते विलुप्त होने की कगार पर धरोहर, कुरा पाषाण से बनाए गए चित्र होते हैं प्रतीत

दमोहOct 12, 2024 / 06:16 pm

Samved Jain

ShailChitra In damoh


दीपक पटेल, हटा. बुंदेलखंड की धरा अपने गर्भ में आज भी अनेक धरोहरों को छिपाए है। कई धरोहरेें तो ऐसी है कि यदि उन्हें उचित संरक्षण मिल जाए, उस स्थान को आवागमन के मार्ग से जोड़ दिया जाए तो यह विश्व धरोहर के रूप में उभर सकती है, लेकिन यह धरोहर उपेक्षा के कारण विलुप्त होने की कगार पर है। कहीं उन पर काई और मिट्टी जम रही हैं तो कहीं यह धरोहर खनिज माफियाओं को अवैध उत्खनन के कारण नष्ट हो रही है।
बटियागढ़ तहसील में जूडी नदी के किनारे एक पहाडी की टूटी फूटी चट्टान पर 15 से 17 शैलचित्र देखे गए हैं, इन चित्रों में हिरण, घोड़े, जंगली सुअर, चूहा व शिकार करते मानव के चित्र बने हुए हैं। यह चित्र गेरू रंग से अंकित हैं। संभावना व्यक्त की जा रही है कि यह चित्र हजारों साल पुराने है।
इसी तरह हटा विकास खंड में सिलापरी गांव के जंगल में पत्थर की गुफाओं में हजारों साल पहले बनाए गए शैलचित्र आज भी स्पष्ट दिखाई देते हैं। गुफा के अंदर बने शैलचित्रों में अधिकांशत: जंगली पशुओं भैंसा, हिरण, खच्चर, लोमड़ी, सुअर, कुत्ता गाय के है। कुछ पुतले व पुतलियों के चित्र हैं। कुछ चित्र अस्पष्ट हैं इन चित्रों को कौन से रंग से बनाया गया है यह स्पष्ट नहीं है।
हजारों साल बाद भी ये चित्र अपनी पहचान बनाए हुए हैं। कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. श्यामसुंदर दुबे ने बताया कि ये चित्र चित्रवीथि प्रागैतिहासिक है। इन चित्रों का 155 वर्ष पहले इसका उल्लेख दमोह दीपक ग्रंथ में भी किया गया है। इसमें इन चित्रों को करीब 15 हजार साल पुराना होना बताया गया है।
यह चित्र विंघ्य की भांदरे शाखा में है। फतेहपुर के पठार नाला रजपुरा के कुडिय़ा नाला में भी ऐसे चित्र देखने को मिलते है। गेरुआ रंग के होने के कारण इन चित्रों को रक्त की पुतरिया भी कहा जाता रहा है। सामान्यत: पशुओं और मनुष्य की आकृति वाले चित्र है जो केवल रेखांकन के माध्यम से बनाए गए है। कहीं-कहीं सीढियां और चैपर जैसी आकृति भी है। इन चित्रों का निर्माण परिवेश के आधार पर ही हुआ है।
आड़ी- तिरछी लाइन से बनाए ये चित्र कोई तांत्रिक चित्र भी हो सकते है। इन चित्रों को पहले महिलाओं ने ही तैयार किया था। उन्हें ही कला का वरदान प्राप्त था। गौरतलब है कि फतेहपुर, रजपुरा, सिलापरी के शैलचित्र प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास भीम बैठका के चित्रों से हूबहू मिलते जुलते थे। ये शैलचित्र आदिमानव के बनाए हुए भी बताए जाते है, जो कुरा पाषाण व मध्य पाषाणकाल के माने जाते हैं।
चित्रकार राजू पलिया कहते है कि ये चित्र महाभारत काल के हो सकते हैं, इस स्थल से कुछ ही दूरी पर भीमकुंड है। यहां पांडवों ने अज्ञातवास का समय काटा था, जब डेरा गुफाओं के पास रहा होगा, तो खाली समय में इन चित्रों को बनाया होगा। यह भी संभावना है। कला के कद्रदानों ने इस अद्वितीय कला को संरक्षण दिए जाने और विश्वस्तरीय पर्यटन केंद्र बनाने की मांग की थी। जिन स्थलों और गुफाओं में यह चित्र है, वहां तक पहुंचना सहज और सरल भी नहीं है। दुर्गम रास्तों से होकर यहां तक पहुंच सकते हैं, गुफा के नीचे भारी खाई है, सारी पर्वत माला पत्थरों की है।

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